एक पत्रकार के सवालों ने बदली EVM विवाद की दिशा, चुनाव आयोग के पास जवाब नहीं

नई दिल्ली: मायावती के बयान के बाद ईवीएम में छेड़छाड़ को लेकर नयी बहस छिड़ गई है. कोई इस बहस में मायावती के साथ दिखाई पड़ रहा है तो कोई कह रहा है कि इस मामले में मायावती को शालीनता से हार स्वीकार करनी चाहिए. इस बीच सोशल मीडिया पर भी लगातार बहस चल रही है. इस बहस के बीच एक पत्रकार का फेसबुक पोस्ट हिला देने वाला है. पत्रकार ने न तो मायावती का पक्ष लिया न विराध किया लेकिन 5 सवाल पूछे. इन सवालों का जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है. इन सवालों का जवाब नहीं है लेकिन एक संदेश है. इस संदेश का मतलब है कि पिछले 15 सालों में चुनाव आयोग अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रहा है. इस पोस्ट को पढ़ेंगे तो साफ हो जाएगा कि चुनाव आयोग ने चुनाव तो कराए लेकिन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के मामले में उसने लापरवाही बरती. पढ़िए ये पोस्ट-

कुछ बेसिक सवाल-
1. क्या ईवीएम में दर्ज वोटों में हेरफेर हो सकता है?
2. क्या ईवीएम में वायरस डालकर हेराफेरी की जा सकती है ?
3. क्या ईवीएम में विदेशों से बैठे-बैठे भी छेड़छाड़ की जा सकती है?
4. भारत में 1989 में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल हुआ, तब से कितनी बार ईवीएम की सिक्टोरिटी को अपग्रेड किया गया ?
5. क्या आज के सिक्योरिटी से जुड़े मानकों पर ईवीएम की सुरक्षा खरी उतरती है?
चुनाव आयोग को इन सवालों का जवाब देना ही चाहिए.देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने की उसकी ही जिम्मेदारी है बल्कि ये उसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी हैं. अगर इन सवालों पर चुनाव आयोग ने काम नहीं किया तो शर्मनाक है. मेरा सवाल यूपी चुनाव के नतीजों से जोड़कर न देखा जाए. अब इस मामले पर बहस खड़ी हुई है लेकिन लापरवाही तो 17 साल से हो रही है. यूपी के नतीजों से ज्यादा इस मामले में भविष्य के चुनावों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. अगर देश के लोग वोट देकर भी सरकार को बदल न पाएं तो फिर कैसा लोकतंत्र. जनता के हाथ में आखिर बचा क्या ?