दो घर – एक बड़े बेटे का और एक छोटे का. दोनों की बिना प्लास्टर की दीवार पर आगज़नी के निशान दो दिन बीत जाने पर भी ताज़ा हैं..और ओमवती का विलाप.
कुछ ही दिनों पहले ब्याह कर आई ओमवती की बहू उस दिन किसी तरह जान बचाकर भागी थीं. अब घर में बस ओमवती हैं और आंगन में खड़ी सहमी नज़रों से सबको देखती एक अकेली गाय.
ओमवती की पड़ोसन मग्गो कहती हैं, ”दोनों बेटों का घर सटा है. दंगा करने वाले एक छत से दूसरे घर पहुंचे और दोनों घरों में आग लगा दी.”
पिछले हफ़्ते सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में भड़की हिंसा और दलितों के घर जलाए जाने के बाद इलाके में अब भी तनाव है.
इस दलित बहुल गांव में राजपूत महाराणा प्रताप की जयंती पर शोभायात्रा निकाल रहे थे जब हिंसक झड़प हो गई थी.
दोनों पक्ष अपनी अपनी बात कह रहे हैं और इसीलिए जहाँ दंगा हुआ, वहां के लोगों की अलग-अलग बातें उन्हीं से सुनना ज़रूरी है.
हमें राजपूत युवक शक्ति के जो लोग मिले, उनका दावा है कि आग ख़ुद दलितों ने लगाई थी, यहां तक कि पुलिस की गाड़ी में भी.
लेकिन आधी जली रोटी, कमरे में बिखरा अनाज, नुकीले हथियारों से भेदी गई खिड़कियां और आंगन में अकेली बंधी वो गाय – कुछ और ही कहानी बयां करते हैं.
म्यूज़िक सिस्टम के साथ पास के गांव सिमलाना जा रही राजपूतों की वो टोली, दलितों और राजपूतों के बीच विवाद, पत्थरबाज़ी और फिर कथित रूप से दूसरे गांवों के सैकड़ों युवकों का शब्बीरपुर में जमा होना और हमला.
गांव की गली के किनारे रहने वाले दलितों का शायद ही कोई घर हो जिसे आग की लपटों ने न घेरा होगा. गेंहू की कटाई के बाद आंगन या घर के बाहर पड़े अनाज भी जगह-जगह जले बिखरे दिखे.
शुक्रवार की घटना में 35 साल के एक राजपूत युवक की मौत हो गई थी. हत्या का मामला दर्ज हुआ है और पुलिस ने 17 लोगों को गिरफ़्तार किया है जिनमें आठ दलित हैं.
सरोज कहती हैं कि उनके पति अपाहिज हैं, लेकिन फिर भी पुलिस उन्हें पकड़कर ले गई.
राजपूत टोली की विमलेश हमें गांव के एक चौराहे पर मिलीं. बेटे समेत उनके घर के भी तीन लोग पुलिस की हिरासत में हैं.
सविता भी विमलेश के साथ हैं. वे तक़रीबन 100 राजपूत औरतों की टोली का हिस्सा हैं जिसने हमें चारों तरफ़ से घेर लिया था.
सविता का भी कहना है कि उनके घर वाले हंगामे में शामिल नहीं थे, फिर भी वो पुलिस के लॉकअप में हैं.
आक्रामक रुख़ अख्तियार करती भीड़ को देख पुलिस की वहां तैनात टुकड़ी हमें वहां से जाने को कहती है. पास के टोले में लगभग सन्नाटे का माहौल है या फिर रोने की आवाज़ें सुनाई पड़ जाती हैं.
मग्गो हमें बताती हैं, ”हम इनके खेतों में कटाई करते हैं, इनका काम करते हैं और इन्होंने हमारे साथ ही ऐसा किया.”
ओमवती के बेटे भी दूसरे दलितों की तरह राजपूतों या दूसरी तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के खेतों या घरों पर मज़दूरी करते हैं.
कुछ दलितों के पास ज़मीनें भी हैं. उनके घर की दीवारें पक्की हैं और छतों तक बाक़ायदा सीढ़ियों जाती हैं.
एक दूसरों पर निर्भरता शायद वो वजह थी जिसकी वजह से गांव में इस तरह का कोई हिंसक विवाद पहले नहीं हुआ था.
लेकिन महाराणा प्रताप जयंती समारोह के दौरान पास के दसियों गांवों और दूसरे सूबों से सैंकड़ो लोगों के आने से लगता है वो ताना-बाना बिखर गया है.
दलित बेहद नाराज हैं. हिंदुओं को एकजुट करने में जुटी सत्ताधारी पार्टी को यहां देशराज सिंह जैसे दलितों को समझाने की ज़रूरत पड़ेगी.
दलित समाज से संबंध रखनेवाले देशराज सिंह कहते हैं, ”हमें तो ये हिंदू ही नहीं समझते वरना हमारे साथ वो ये करते.”
(courtsey-BBC)