पहले कश्मीर के हालात बिगड़े अब खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे, मोदी जी ये क्या हो रहा है?

अमृतसर: कश्मीर के हालात तो लगातार बिगड़ ही रहे हैं. फिर से कश्मीर में हिंसक आतंकवादी घटनाएं होने लगी हैं और वहां के लोक पत्थरबाज़ी पर उतारू हैं. लेकिन लगता है इतना ही काफी नहीं था. देश में खालिस्तान समर्थक आवाज़ें फिर से बुलंद होने लगी है.  ऑपरेशन ब्लूस्टार की 33वीं बरसी के मौके पर मंगलवार को स्वर्ण मंदिर परिसर में फिर से हंगामा हुआ. और लोगों ने खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगाए.पहली बार शहीदी समागम में कौम के नाम संदेश दोनों दल के जत्थेदारों ने पढ़ा. तस्वीरों में देखें सकते हैं कि कैसे बच्चे नारे लगा रहे हैं और उनके हाथों में तख्तियां भी हैं, जिसमें लिखा है वो 1984 का मंजर कभी नहीं भूल सकते.

हालांकि, एसजीपीसी ने पहले ही स्पष्ट किया था कि संदेश श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ही पढ़ेंगे, जबकि दूसरी तरफ दल खालसा जैसे गर्मख्याली संगठनों ने इस जत्थेदार को सिरे से खारिज किया और कहा कि उनका संदेश कौम को मान्य नहीं होगा.

इसलिए जब दूसरे दल के जत्थेदार ने संदेश पढ़ना शुरू किया तो माइक तोड़ दिए गए और लाउंड स्पीकर फाड़ दिए गए. इसके बाद हर साल की तरह एक बार फिर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे.

दो साल पहले भी दरबार साहिब के अंदर का माहौल भी हिंसक हो गया था. इस बार अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए पुलिस ने पुख्ता इंतजाम किए हैं. पूरे शहर में चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल पैरामिलिट्री फोर्स तैनात हैं.

समागम की पूर्व संध्या पर मार्च निकालने वाले दल खालसा के प्रधान हरपाल सिंह चीमा तथा प्रवक्ता कंवर पाल सिंह बिट्टू ने साफ कहा है कि जत्थेदार गुरबचन सिंह पंथ के बीच अपनी साख गवां चुके हैं. क्योंकि डेरा सिरसा वाले मामले में पंथ उनको नकार चुका है और नकारे हुए इंसान की बात या फिर संदेश का कोई महत्व नहीं होता.

उक्त नेताओं का कहना है कि कौम उनके संदेश को नहीं सुनेगी और अगर जबरन संदेश उस पर थोपा गया तो वह विरोध भी कर सकती है. इन नेताओं का कहना है कि ऐसे में अगर माहौल खराब हुआ तो उसकी जिम्मेदारी एसजीपीसी की होगी.

6 जून 1984 को हुआ था ऑपरेशन ब्लू स्टार

खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ स्वर्ण मंदिर में 6 जून 1984 को ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया गया था. ये सभी खालिस्तान समर्थक थे. जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर लिया था. वे बाहर आने को तैयार नहीं थे.

तब इंदिरा गांधी की सरकार ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया था. इसमें कई लोग मारे गए थे. करीब 200 लोगों ने सरेंडर किया था.