हिंदू और मुसलमान सिर्फ धर्म के नाम पर लड़ने झगड़ने के मामले में ही पिछड़े और मूर्ख नहीं हैं. वो सामाजिक रूप से भी पिछड़े हैं. हाल ही में एक संस्था ने जो सर्वे किया है वो कहता है कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही अपनी लड़कियों को लेकर जैन, सिखों और ईसाइयों से पीछे हैं. सर्वे में बालविवाह को लेकर कई खुलासे हुए हैं.
सर्वे दिल्ली की एक संस्था ‘निरंतर’ ने के सात राज्यों में किया गया है . सर्वे के मुताबिक जैन समुदाय की युवतियों की शादी की औसत उम्र 20 साल 8 महीने है, ईसाई समुदाय में यह उम्र सीमा 20 साल 6 महीने है, सिख समुदाय में युवतियों की शादी की उम्र सीमा 19साल 9महीने है, जबकि हिंदू और मुसलमानों इस मामले सबसे पिछड़े हैं . उनके यहां शादी की औसत उम्र 16.7 है. किशोरियों के मां बन जाने के सबसे ज्यादा मामले भी हिंदू और मुसलमानों में ही मिलते हैं यानी 1 फीसदी. दूसरे समुदायों की हालत इस मामले में बेहतर है. ये दोनों ही समुदाय पूरे देश की हालत खराब होने के लिए ज़िम्मेदार हैं क्योंकि भारत की राजधानी में 97.3 लोग या तो हिंदू हैं या मुसलमान.
स्वयंसेवी संस्था निरंतर की रिपोर्ट ‘अर्ली एंड चाइल्ड मैरिज इन इंडिया: ए लैंडस्केप एनालाइसिस’ नाम की रिपोर्ट के मुताबिक, कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दिए जाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे परिवार की आय, स्थान (शहरी अथवा ग्रामीण), समुदाय, जाति और शिक्षा, जिनका सीधा संबंध एक भारतीय किशोरी या युवती की शादी की उम्र तय करने से है.
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 72 करोड़ महिलाओं की शादी 18 साल से पहले हुई है, जिनमें एक तिहाई महिलाएं भारत में हैं. जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 15.6 करोड़ है.
यह भी देखा गया है कि शिक्षा और आय की भी विवाह की उम्र तय करने में विशेष भूमिका रहती है. निरंतर की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च आय वाले परिवारों में लड़कियों की शादी कम आय वाले परिवारों की लड़कियों की तुलना में चार साल बाद होती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहरों में रहने वाली लड़कियां ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की तुलना में दो साल देर से शादी करती हैं.
रिपोर्ट में बताया गया कि केरल और असम में बाल विवाह की दर बेहद निम्न है, जिसका कारण इन स्थानों में महिलाओं का शिक्षित होना है.