छोटे से प्रदर्शन के बाद ही ‘आप’ सरकार ने वापस ले लिया फैसला, इसे कहते हैं लोकतंत्र,

ये है लोकतंत्र में सरकारों के काम करने का सही तरीका. जनता की आवाज़ को सुनना समझना और उसे सही होने पर मानना. दिल्ली में एक छोटी सी घटना ने नज़ीर पेश की है. दरअसल पुरानी दिल्ली इलाके में कई सरकारी स्कूल ऐसे थे जिनमें  10-20 छात्र ही पढ़ा करते थे. ऐसी हालत में सरकार का  नियम है कि जिन स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या लगातार कम हो वो नज़दीक के दूसरे स्कूल में मिला दिए जाते हैं. इन स्कूलों को भी मिलाए जाने का फैसला हुआ. लेकिन छात्रों और अभिभावकों को ये फैसला पसंद नहीं था. तुरंत लोगों ने स्कूल के बाहर खड़े होकर नारे लगाए. छात्राएं भी सड़कों पर आ गईं.

एक ही प्रदर्शन के बाद तुरंत आम आदमी पार्टी की सरकार ने समझ लिया कि ये फैसला जनता को पसंद नहीं है. अगले ही दिन विधायक अल्का लांबा डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया से मिलीं उन्होंने खड़े खड़े आदेश कर दिया कि इस फैसले को वापस ले लिया जाए.

उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के हस्ताक्षरित आदेश के मुताबिक इमरान हुसैन (पर्यावरण मंत्री और विधायक बल्लीमारान) और अल्का लांबा (विधायक चांदनी चौक) ने उन्हें बताया कि इन छह स्कूलों के विलय का विद्यार्थी और अभिभावक विरोध कर रहे हैं. इसे देखते हुए हमने शिक्षा निदेशालय को इन स्कूलों के विलय का फैसला वापस लेने को कहा है.

 

जब जनता की मांग पर इतनी तबज्जोह दी जा रही है तभी याद आती है जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसानों के उन्होंने अपने साथियों की खोपड़ियां लेकर प्रदर्शन किया. अपना स्वमूत्र पिया, लेकिन मांग पूरी नहीं हुई. और तो और सत्ता धारी पार्टियों ने इनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू कर दिया कि वो विपक्षी पार्टियों के एजेंट हैं. जब आप लोगों की जायज मांगों को सहानुभूति से नहीं देखते तो वो हिंसक तरीके अपनाते हैं. हाल के सालों मं सरकारों का ऐसा कठोर रवैया अलग अलग मामलों पर सामने भी आया है.

नॉकिंग न्यूज़ को लगा कि इस मामले में एक शाबाशी तो बनती है. हमेशा लोगों की आलोचना ही करना तो पत्रकारिता नहीं है ना.