नई दिल्ली: भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की सुरक्षा को लेकर हकीकत सामने आई है. रिपोर्ट ने आइना दिखाया है कि किस तरह मोदी सरकार ने तीन साल में देश को खोखला किया.. लेकिन कैग की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत के पास लंबे समय तक युद्ध के लिए पर्याप्त गोला-बारूद नहीं है. CAG ने सेना के पास गोला-बारूद में भारी कमी होने की रिपोर्ट संसद में पेश की है. रिपोर्ट में लिखा है कि अगर भारतीय सेना को लगातार 10 दिन युद्ध करना पड़ गया तो उसके पास पर्याप्त गोला-बारूद नहीं है.
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय सेना ने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए 2009 से 2013 के बीच हथियार, फाइटर प्लेन आदि खरीदने के लिए कई डील किए . उनका प्रचार प्रसार ज़ोर शोर से किया गया है. लेकिन उनमें से अधिकतर CAG रिपोर्ट तैयार होने तक यानी जनवरी 2017 तक पेंडिंग थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे देश की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री जरूरत के हिसाब से गोला-बारूद का निर्माण नहीं कर पा रही है. 2013 के बाद ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की ओर से सप्लाई में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. जबकि सेना की डिमांड बढ़ती जा रही है.
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की ऑर्डिंनेस फैक्ट्रियां पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पाने के साथ क्षतिग्रसत सामानों की मरम्मत भी नहीं कर पा रही है. गोला-बारूद के डिपो में अग्निशमनकर्मियों की कमी रही और उपकरणों से हादसे का खतरा रहा. रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी में आर्मी के गोला-बारूद मैनेजमेंट का फॉलोअप ऑडिट किया गया.
बख्तरबंद वाहन की क्षमता पर भी उठे सवाल: बताया गया है कि ऑपरेशन की अवधि की जरूरतों के हिसाब से सेना में वॉर वेस्टेज रिजर्व रखा जाता है. रक्षा मंत्रालय ने 40 दिन की अवधि के लिए इस रिजर्व को मंजूरी दी थी. 1999 में आर्मी ने तय किया कि कम से कम 20 दिन की अवधि के लिए रिजर्व होना ही चाहिए. सितंबर 2016 में पाया गया कि सिर्फ 20 फीसदी गोला-बारूद ही 40 दिन के मानक पर खरे उतरे. 55 फीसदी गोला बारूद 20 दिन के न्यूनतम स्तर से भी कम थे. हालांकि इसमें बेहतरी आई है, लेकिन बेहतर फायर पावर को बनाए रखने के लिए बख्तरबंद वाहन और उच्च क्षमता वाले गोला-बारूद जरूरी लेवल से कम पाए गए.
रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय ने 2013 में रोडमैप मंजूर किया था, जिसके तहत तय किया गया कि 20 दिन के मंजूर लेवल के 50 फीसदी तक ले जाया जाए और 2019 तक पूरी तरह से भरपाई कर दी जाए. 10 दिन से कम अवधि के लिए गोला-बारूद की उपलब्धता क्रिटिकल (बेहद चिंताजनक) समझी गई है. 2013 में जहां 10 दिन की अवधि के लिए 170 के मुकाबले 85 गोला-बारूद ही (50 फीसदी) उपलब्ध थे, अब भी यह 152 के मुकाबले 61 (40 फीसदी) ही उपलब्ध हैं.
2008 से 2013 के बीच खरीदारी के लिए 9 आइटमों की पहचान की गई थी. 2014 से 2016 के बीच इनमें से पांच के ही कॉन्ट्रैक्ट पर काम हो सका है. कमी को दूर करने के लिए भारतीय सेना ने बताया है कि मंत्रालय ने वाइस चीफ के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिए हैं.
मोदी जी बातों से आप देश को तो बहला सकते हो. फोटो खिंचाकर नाम भी कमा सकते हो लेकिन देश की सुरक्षा डायलॉग बाज़ी से नहीं हो सकती. एक तरफ सरकार चीन और पाकिस्तान बॉर्डर पर लगातार तनाव बढ़ा रही है ताकि देश में राजनीतिक रूप से बीजेपी को मजबूती मिलती रहे दूसरी तरफ देश की सुरक्षा को अंदर से खोखला कर दिया गया है. मोदी सरकार के तीन साल पूरे नहीं हुए हैं लेकिन हालात ये हैं कि भारत के पास इतना गोला बारूद भी नहीं है कि युद्ध को 10 दिन तक जारी रख सके.