कश्मीर की बात आते ही अक्सर नेहरू का जिक्र आता है. कहा जाता है कि नेहरू ने कश्मीर समस्या को भड़का दिया. लेकिन तरह तरह के प्रोपेगंडा और सोशल मीडिया के नकली समर्थन और विरोध के बीच ये जानना बहुत ज़रूरी हो गया है कि नेहरू वाकई कश्मीर पर क्या कहते थे क्या सोचते थे. आप पढ़ें उनका पूरा भाषण
लेकिन कश्मीर पर नीतिगत और दूरगामी इंतजाम की कोई बात अब तक सुनने को नहीं मिली. ऐसे में 15 अगस्त 1953 को लाल किले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक भाषण बहुत उल्लेखनीय नजर आता है. पंडितजी उन हालात में यह भाषण दे रहे थे, जब कश्मीर ज्ञात इतिहास के सबसे बड़े उखाड़-पछाड़ के दौर से गुजर रहा था.
कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 का विरोध चरम पर था. इसी आंदोलन में कश्मीर में गिरफ्तार किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 23 जून को कश्मीर के जेल में मौत हो चुकी थी. नेहरू इशारा करते हैं कि जनसंघ की तरफ से चले इस आंदोलन का मकसद तो था कश्मीर को भारत से जोडऩा, लेकिन सांप्रदायिक स्वरूप के कारण इस आंदोलन ने कश्मीर समस्या को और भड़का दिया.
इसके बाद 8 अगस्त को अपने परम मित्र शेख अब्दुल्ला की सरकार को नेहरू न सिर्फ बरखास्त कर चुके थे, बल्कि अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया गया था, जहां वे अगले 10 साल तक रहने वाले थे. इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर नेहरू ने भी मीडिया की भूमिका की आलोचना की थी. लेकिन सबसे बड़ी बात उन्होंने यह कही थी कि कश्मीर का फैसला कश्मीर के लोग ही करेंगे. लाल किले की प्राचीर से नेहरू ने पूरी दुनिया को संदेश दिया कि कश्मीर पर भारत की नीति क्या है? लेकिन आज दबंग अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो क्या, नेहरू के वंशज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी यह बात नहीं कर सकते. पेश है भाषण का कश्मीर से जुड़ा अंश-
‘अभी आज से एक हफ्ता हुआ, चंद वाकयात कश्मीर में हुए थे, जिनकी वजह से हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में काफी परेशानी हुई है. मैं आप से उन वाकयात के बारे में ज्यादा नहीं कहना चाहता, क्योंकि यह मौका नहीं है. लेकिन इतना मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आप जरा आगाह हो जाएं. गलत खबरों को न मानें, गलत अफवाहों को न सुनें. कितनी गलत बातें फैलती हैं. जब मैं इन पिछले चंद दिनों के पाकिस्तान के अखबारों को पढ़ता हूं, तो मैं हैरान रह जाता हूं कि कश्मीर के बारे में उनमें कैसी गलत खबरें छपी हैं, कि हमारी फौजों ने कहां क्या-क्या किया, क्या नहीं किया.
मैं आपसे कहता हूं, दावे से कहता हूं, जान कर कहता हूं कि हमारी फौजों ने वहां कोई हिस्सा इन वाकयात में नहीं लिया. फिर भला इसके क्या माने हैं कि इस तरह से यह झूठ फैलाया जाए. खाली पाकिस्तान में ही नहीं, लेकिन बाहर के अखबारनवीसों ने और मुल्कों ने भी इस बात को कहा. इस तरह से ख्वामख्वाह के लिए गलत बातें फैलाना बेजा बात है. ख्वामख्वाह के लिए लोगों को एक इश्तयाल देना और भड़काना, ताकि मुल्कों में रंजिश पैदा हो.
इस वक्त जो बेजा बातें कश्मीर में हुईं, मुझे उनका रंज है, क्योंकि एक पुराने हमसफर और साथी से जब कुछ अलहदगी हो, रंज की बात है, और मैं आपसे कहूंगा ऐसे मौके पर किसी को बुरा-भला कहना अच्छा नहीं है, दुरुस्त नहीं है. क्योंकि अपने एक पुराने साथी को बुरा कहना, वह घूमकर अपने ऊपर आ जाता है. ऐसी बात में रंज होता है, लेकिन कभी-कभी कितना ही रंज क्यों न हो, अपने कर्तव्य को, अपने फर्ज को पूरा करना होता है, अदा करना होता है.
लेकिन अगर ऐसा करें भी तो वह शान से सही रास्ते पर चल कर करें, गलत बातों से नहीं और हमेशा उन उसूलों को याद रखकर. मैंने आपसे कहा, अकसर कई ऐसी बातें कश्मीर में हुई, जिनसे तकलीफ हुई. उसके पीछे भी एक कहानी है और इसके पीछे वे वाकयात भी हैं, जिसने किसी कदर कश्मीर के लोगों को भड़काया.
सांप्रदायिकता के, फिरकापरस्ती के वे वाकयात जो कुछ आपके दिल्ली शहर में हुए, वे वाकयात जो कुछ पंजाब में, तथा कुछ और जगह भी हुए. एक अजीब तमाशा था. यहां चले थे एक बात हासिल करने, और उसका बिलकुल उलटा असर पैदा हुआ. तो इससे आप देखेंगे कि गलत रास्ते पर चलकर गलत नतीजा होता है, चाहे आपकी नीयत कुछ हो, चाहे आप कहीं जाना चाहें.
खैर, कश्मीर की बात मैं आपसे कह रहा था और उसे फिर से दोहराना चाहता हूं कि यह आज नहीं, कई बरस हुए, लगभग छह बरस हुए, जब हमने इकरार किया था कि कश्मीर के भविष्य का कश्मीर के लोग ही फैसला कर सकते हैं. और हमने उसको बाद में भी दोहराया है और आज भी यह बिलकुल हमारे सामने तयशुदा बात है कि जो कश्मीर का फैसला आखिर में होगा, वह वहां के लोग ही कर सकते हैं, कोई जबरन, कोई जबर्दस्ती फैसला न वहां, न कहीं और होना चाहिए.
वहां कश्मीर में एक नई गवर्नमेंट पिछले हफ्ते में कायम हुई. और वह जल्दी में है, जब तक कि वह कश्मीर के लोगों की नुमाइंदगी करे. यानी जो इस वक्त वहां एक चुनी हुई विधानसभा है, अगर वह उसको स्वीकार करती है तो ठीक है, नहीं करती, तो कोई दूसरी गवर्नमेंट वहां की संवैधानिक सदन बनाएगी. हमारे जो सिद्धांत हिंदुस्तान के लिए रहे, वे हिंदुस्तान के हर एक हिस्से के लिए हैं, वही कश्मीर के लिए भी हैं.
तो यह वाकया हुआ कश्मीर में, जो कुछ हुआ उससे मैं समझ सकता हूं कि आपको या औरों को उससे यकायक कुछ ताज्जुब हो, कुछ आश्चर्य हो, क्योंकि आपको तो इसकी पुरानी कहानी बहुत हद तक मालूम नहीं. लेकिन किस हद तक बात बढ़ाई गई और गलत बातें बताई गईं….और मुल्कों में, खासकर हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में और इन बातों पर वहां एक अजीब परेशानी, एक अजीब नाराजगी और एक इजहारे-राय हुआ है जिसका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं. खैर, मैं यहां खास किसी की भी नुक्ताचीनी करने खड़ा नहीं हुआ, लेकिन अपने रंज का इजहार करता हूं. अगर हम इस तरह जल्दी से उखड़ जाएं, इस तरह से घबरा जाएं या परेशान हो जाएं, तो कोई बड़े सवाल हल नहीं होते, समझ में नहीं आते.
मैं आपको आगाह करना चाहता हूं, आज नहीं कल, कल नहीं परसो, हमारे सामने हजारों बड़े-बड़े सवाल आएंगे, दुनिया के सामने आएंगे और इस वक्त आपका और हमारा और हमारे मुल्क का इम्तिहान होगा कि हम शांति से, सुकून से, इत्मीनान से, उन पर विचार करते हैं या घबराए हुए, परेशान हुए, डरे हुए इधर-उधर भागते हैं. इस तरह से हर कौम के इम्तिहान होते हैं और जितना ज्यादा मुश्किल सवाल हो, उतना ही ज्यादा दिमाग ठंडा होना चाहिए, उतना ही ज्यादा हमें शांति से, सुकून से काम करना चाहिए. कश्मीर पर जब हमने यह बुनियादी उसूल मुकर्रर कर दिया कि कश्मीर के बारे में कश्मीर के लोग तय करेंगे….तो उसके बाद फिर बहस किस बात की.
हां, बातें हो सकती हैं कि किस तरीके से हों, रास्ता क्या हो. पर एक उसूल की बहस तो नहीं है. शुरू से जब से यह कश्मीर का मामला हमारे सामने आया, हमने यही बात कही, और दूसरी बात यह कही कि हिंदुस्तान में कश्मीर की एक खास जगह है. हिंदुस्तान के खानदान में कश्मीर आया, खुशी की बात है, मुबारक हो.
लेकिन यहां उसकी जगह खास रखी गई, औरों की नहीं, क्योंकि भूगोल ने, और बजूहात ने एक खास जगह उसे दी. जो लोग नासमझी में शोर-गुल मचाएं कि अन्य राज्यों की तरह कश्मीर का भी स्थान होना चाहिए, वे न वाकयात को समझते हैं और न हालात को. और उन्होंने देखा कि उसका नतीजा उलटा हुआ.’
सौजन्य- चौक