नई दिल्ली : प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारे देश में बहुत से दलाल हैं. दलाली इनका रोजगार है. लेकिन ऐसे लोग इन दिनों बेकार हो गए हैं और अब वे बहुत चिल्ला रहे हैं कि रोजगार नहीं है, रोजगार नहीं हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि ये दलाल गरीब के घर में जाते थे और चपरासी की नौकरी दिलाने के लिए 50 हजार रुपये और अंशकालिक नौकरी दिलाने को 20 हजार रुपये मांगते थे. प्रधानमंत्री मोदी ने ये बयान देकर ये कोशिश की है कि भारत में बेरोज़गारी कम हो रही है और बेरोज़गारी के मसले पर हायतौबा गलत है . नॉकिंग न्यूज़ यहां कुछ आंकड़े प्रधानमंत्री जी को नज़र करना चाहता है ताकि वो जान सकें कि उनका देश रोज़गार के भयंकर संकट से जूझ रहा है और सिर्फ जुमलेबाज़ी से हालात नहीं सुधरेंगे.
सबसे पहले बात करते हैं संयुक्तराष्ट्र संघ की रिपोर्ट की…
हाल में ही आई संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में बेरोजगारी बढ़ेगी और नये रोज़गार पैदा होने का काम आसान नहीं होगा. संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने ‘2017 में वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक दृष्टिकोण’ पर गुरुवार को अपनी रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट के अनुसार रोजगार जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है और इसमें पूरे 2017 के दौरान बेरोजगारी बढ़ने और सामाजिक असामनता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई है. वर्ष 2017 और वर्ष 2018 में भारत में रोजगार सृजन की गतिविधियों के गति पकड़ने की संभावना नहीं है क्योंकि इस दौरान धीरे धीरे बेरोजगारी बढ़ेगी और प्रतिशत के संदर्भ में इसमें गतिहीनता दिखाई देगी. रिपोर्ट के अनुसार आशंका है कि पिछले साल के 1.77 करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल 1.8 करोड़ हो सकती है. प्रतिशत के संदर्भ में 2017-18 में बेरोजगारी दर 3.4 प्रतिशत बनी रहेगी. वर्ष 2016 में रोजगार सृजन के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन थोड़ा अच्छा था.
अब बात रोज़गार कम होने के कारणों की
इंडस्ट्रियल आउटपुट यानी औद्योगिक उत्पादन में तेज गिरावट दर्ज की गई है जो जून महीने में 0.1 प्रतिशत गिर गई. यानी फैक्ट्रियों की संख्या या तो कम हो रही है या उनमें बनने वाला माल. खास बात यह है कि पिछले साल इसी महीने में औद्योग उत्पादन में 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी. इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रॉडक्शन यानी IIP में आई यह गिरावट निर्माण क्षेत्र और कैपिट गुड्स सेक्टरों में कमी की वजह से आई है. खनन, ऊर्जा, इंफ्रस्ट्रक्चर/निर्माण और कंज्यूमर ड्युरेबल्स का प्रदर्शन बहुत खराब रहा.
केंद्रीय सांख्यिकी विभाग ने शुक्रवार को औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े जारी किए. अप्रैल से जून की तिमाही में औद्योगिक उत्पादन वृद्धि घटकर 2 प्रतिशत रह गई जो पिछले साल समान तिमाही में 7.1 प्रतिशत रही थी. मौजूदा वित्त वर्ष में पहली बार औद्योगिक उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है. अप्रैल में औद्योगिक विकास दर 3.4 प्रतिशत रही तो मई में यह गिरकर 2.8 प्रतिशत पर आ गई. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जून में तेज गिरावट देखी गई. जून में इसमें 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.
निवेश का पैमाना माने जाने वाले कैपिटल गुड्स आउटपुट में 6.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि एक साल पहले इसमें 14.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कंज्यूमर नॉन ड्यूरेबल्स में क्रमशः -2.1 प्रतिशत और 4.9 प्रतिशत ग्रोथ दर्ज की गई. अर्थव्यवस्था खासकर उद्योग जगत के लिए काफी बुरे संकेत हैं. जून महीने में 23 औद्योगिक समूहों में से 15 ने नेगेटिव ग्रोथ दिखाया है.
ये रिपोर्ट न तो किसी ने सोशल मीडिया पर गढ़ी हैं न किसी और ने घर में बनाया है. इतनी गंभीर समस्या को अगर प्रधान मंत्री नकार देगे तो फिर वो बेरोज़गारी दूर करने के लिए कुछ करेंगे ? ये बड़ा सवाल है