नई दिल्ली : पुराने लोग कह गए हैं कि लीकहि लीक तीनों चलें कायर कुकुर कपूत लीक छोड़ आगे बढ़ें शायर , शेर , सपूत. निजता के अधिकार पर आज एक इतिहास नहीं बना बल्कि एक लीक भी तोड़ी गई. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाय चन्द्रचूड़ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताकर अपने पिता जस्टिस वाई वी चन्द्रचूड के एक अहम फैसले को भी पलटा है, जो उन्होंने 1975 में एडीएम जबलपुर वर्सेस शिवकांत शुक्ला के मामले में दिया था.
अपने पिता के फैसले के विपरित जाते हुए डीवाई चन्द्रचूड ने कहा कि उस दौरान चार जजों द्वारा बहुमत में दिये गये फैसले में कई खामियां थी. 24 अगस्त को जस्टिस वाई वी चन्द्रचूड ने अपने फैसले में लिखा, ‘जीवन और व्यक्तिगत आजादी मानव के अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा है. जैसा कि केशवानन्द भारती मामले में कहा गया है ये अधिकार मनुष्य को आदिकाल से मिले हुएे हैं.
ये अधिकार प्रकृति के कानून का हिस्सा हैं.’ उन्होंने कहा कि निजता के अधिकार की ये प्रतिष्ठा आजादी और स्वतंत्रता के साथ जुड़ी हुई है. और कोई भी सभ्य राज्य बिना कानून की इजाजत के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कुठाराघात नहीं कर सकता है. जस्टिस वाई वी चन्द्रचूड ने आगे लिखा कि कोर्ट का बन्दी प्रत्यक्षीकरण जारी रिट जारी करने की शक्ति काननू की एक गजब की शक्ति है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने गुरुवार को निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिए जाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार के लिए झटका है. भूषण ने शीर्ष अदालत का फैसला आने के बाद संवाददाताओं से कहा, “यह सरकार के लिए झटका है, क्योंकि यह निजता पर सरकार के रुख के खिलाफ है.”सर्वोच्च न्यायालय की नौ सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से दिए अपने फैसले में कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है.