संसदीय समिति ने भ्रामक प्रचार और विज्ञापन करने वाले सेलिब्रिटीज़ को अब जवाबदेही के कठघरे में खड़ा करने के लिए पार्लियामेंट्री कमेटी ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल में संशोधन के लिए रिपोर्ट दी है. सिफारिशों के मुताबिक पहली बार ऐसा प्रचार करते हुए पाए जाने पर 10 लाख रुपये का जुर्माना और दो साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान हो सकता है. वहीं दूसरी बार ऐसा होने पर 50 लाख रुपये तक की पेनल्टी और 5 साल की सजा हो सकती है या दोनों भी हो सकते हैं. लेकिन यदि बार-बार ऐसा किया जा रहा होगा तो उत्पाद अथवा सर्विस की बिक्री के आधार पर पेनल्टी लगाई जा सकती हैं.
इन सभी सिराफिशों को जल्द ही संसद में रखा जायेगा. गौरतलब है कि यदि संसदीय समिति की इन सिफारिशों को इंडियन कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल में शामिल किया जाता है तो प्रचार करने वाली नामी हस्तियों को कोई भी कॉन्ट्रैक्ट साइन करने से पहले इन सभी बातों से सहमत होना होगा. सिफारिशों में कहा गया है कि मैनूफेक्चरर और प्रमोटर के साथ सेलिब्रिटीज को भी जवाबदेह होना चाहिए.
ऐसे में विख्यात ब्रांड कंस्लटेंट हरीश बिजूर का कहना है कि ऐसा होना सही है, क्योंकि लोग सेलेब्रिटी को देखकर ही प्रोडक्ट पर भरोसा करते हैं.
विज्ञापनों के ज़रिए लोगों को बेवकूफ बनाने के हज़ारों मामले सामने आते रहते हैं. जनवरी में भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) ने पतंजलि आयुर्वेद के बालों के तेल उत्पाद केश कांति संबंधी विज्ञापन को भ्रामक पाया है. परिषद का कहना था कि कंपनी विज्ञापन में किए गए दावों के समर्थन में कोई क्लिनिक्ल साक्ष्य पेश नहीं कर पाई है. इसके साथ ही परिषद ने भारती एयरटेल, आइडिया सेल्यूलर, फ्लिपकार्ट, मायंत्रा, बजाज ऑटो, निसान मोटर और इंडिगो एयरलाइंस सहित विभिन्न कंपनियों के 37 विज्ञापन अभियानों के खिलाफ शिकायतों को भी सही पाया था. गौरतलब है कि उक्त कंपनियों के विज्ञापन भी भ्रामक बताते हुए शिकायत की गई थी. वहीँ 2014 में भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) विज्ञापनों में भ्रम के आरोप में दर्ज 136 शिकायतों में से 99 को सही ठहराया. इनमें प्रॉक्टर एंड गैंबल, आईटीसी, मारिको और डाबर जैसी दिग्गज कंपनियों के विज्ञापन भी हैं.
इस बिल के पास होने का मतलब है कि बुद्धू बनाने वाले सेलेब्रिटीज को सलाखों के पीछे जाना होगा ।आज विज्ञापनों की दुनिया इतनी बड़ी हो चुकी है कि यदि कोई कंपनी किसी नामी सेलेब्रिटी को किसी कैम्पेन प्रोजेक्ट के तहत साइन करती है तो एक दस से पच्चीस करोड़ रुपये तक देती है. अब बात आती है उत्पाद की गुणवत्ता और किये गए वादे की जो उपभोक्ताओं से किए जाते हैं ‘आठ दिनों में गोरापन’, ‘इंस्टेंट गोरापन’, दो सप्ताह में वज़न कम करें’, ‘अपना लक पहन कर चलो’, इसको लगा डाला तो लाइफ झिंगालाला’ इत्यादि टैगलाइन्स भ्रामकता पैदा करने के लिए काफी हैं. वहीं कई बार देखने को मिलता है की बड़ी-बड़ी फिल्म, क्रिकेट, टेनिस सेलिब्रिटीज कई ऐसे उत्पादों का प्रचार करते हुए नज़र आती हैं जो वो खुद इस्तेमाल में नहीं लाते हैं लेकिन एक बड़ी राशि के बदले ये सेलिब्रिटीज तेल, नमक, चाय, बिस्कुट इत्यादि बेचते हुए नज़र आते हैं.
ध्यान दिया जाए तो भ्रामक विज्ञापनों का सीधा नकारात्मक असर दिखता है. लोग अपनी कम आय के होने का बावजूद ऐसी भ्रामक उत्पादों के प्रति आकर्षित होते हैं और कई बार ये उत्पाद गुणवत्ता के मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि कहीं न कहीं इन पर एक लगाम कसी जाए. सबसे महत्वपूर्ण बात होती है देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ करने की. तीज त्योहारों पर जहां लड्डू और मिठाई के जरिए मुंह मीठा करवाया जाता था अब उसकी जगह चॉकलेट और नमकीन लेने लगी हैं. शादी की रस्मों में जहां हल्दी चन्दन के उबटन होते थे वो अब निखारने वाली क्रीम लेने लगी हैं. फेहरिस्त बेहद बड़ी है.
काश कि ऐसा कोई कानून नेताओं के लिए भी आ पाता. और वो भी झूठे दावे करके जेल जाते