नई दिल्ली: न्यूयॉर्क टाइम्स की ताजा रिपोर्ट ने संघ परिवार और बीजेपी में फिक्र भर दी है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी की लोकप्रियता और उनके फैसले पर लोगों की राय को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के अनुसार मोदी का करिश्मा अब खत्म होने लगा है. अखबार के मुताबिक पिछले दो वर्षों में भारत के ग्राहकों के भरोसे में गिरावट देखी गई है. कंस्ट्रक्शन की रफ्तार धीमी हुई है. निश्चित निवेश की दर गिरी है, कई फैक्ट्रियां बंद हो गईं और बेरोजगारी का आंकड़ा बढ़ता चला गया. अखबार कहता है कि मोदी की पहचान हमेशा दो चीजों को लेकर रही- पहला राष्ट्रवाद और दूसरा, देश की अर्थव्यवस्था को ऊंचाई पर ले जाने का उनका पक्का वादा. हालांकि दूसरी पहचान अब धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है.
न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि लगभग सभी अर्थशास्त्री इस बात को लेकर सहमत हैं कि प्रधानमंत्री की ओर से लिए गए दो सबसे बड़े नीतिगत फैसलों ने भारत की ग्रोथ को धीमा कर दिया है. पहले अचानक नोटबंदी की गई और फिर एक साल के भीतर ही टैक्स को लेकर बड़ा कदम उठाया गया. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली के अर्थशास्त्र के प्रफेसर हिमांशु कहते हैं, ‘चीजें खराब, खराब और खराब होती जा रही हैं.’ अब भी अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है पर असफलता से काफी दूर है.
रिपोर्ट कहती है कि शेयर मार्केट लगातार चढ़ रहा है. देश में कई रेल, रोड और पोर्ट के प्रॉजेक्ट्स शुरू हो रहे हैं और विदेशी निवेश अप्रैल से सितंबर के बीच में 2016 के इसी अवधि की तुलना में 17 फीसदी बढ़ा है. सरकार ने शुक्रवार को अनुमान व्यक्त करते हुए कहा कि देश का GDP 2017-18 वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत रहेगा. हालांकि इस आंकड़े को संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह देश के पिछले चार वर्षों के इतिहास में सबसे कम है. यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को पाने की चाहत दुनिया के कई देश रखते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा नहीं लगता है अर्थव्यवस्था से भी बड़ा मुद्दा है सामाजिक तनाव खासतौर से जो हिंदुओं और मुसलमानों में मतभेद की दीवार खड़ी करता है. ऊंची और नीची जाति को लेकर भी तनाव बढ़ता है. आशंका इस बात की है कि पीएम मोदी भी खुद हिंदू राष्ट्रवाद पर ज्यादा जोर देने लगे हैं और उनकी दूसरी पहचान की चमक क्षीण होने लगी है.
1.3 अरब आबादी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. 10 वर्षों में आर्थिक जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन जाएगी. भारत केवल अमेरिका और चीन से पीछे होगा. भविष्य में क्या होता है, यह तो महत्वपूर्ण है पर देश के भीतर का भरोसा कमजोर हो रहा है.नौकरियों के अवसर मुहैया कराना देश की सबसे प्रमुख राजनीतिक प्राथमिकता है. उधर, मोदी हर साल एक करोड़ नौकरियां देने के अपने वादे से काफी दूर हैं.
मोदी के अपने गढ़ का माहौल
गुजरात, जो मोदी का गढ़ माना जाता है, वहां के भी काफी लोग अब मानते हैं कि उनके साथ धोखा हुआ है, जबकि इनमें से काफी लोग मोदी के कायल रहे हैं. सूरत में कपड़ा उद्योग काफी रोजगार पैदा करता है. सैकड़ों सालों से इसका गौरवशाली इतिहास रहा है, यहां से बड़ी मात्रा में निर्यात होता आ रहा है लेकिन आज आलम यह है कि निर्यात करीब आधा हो गया है. इसका असर रोजगार पर पड़ा है और बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ी है.
कई औद्योगिक क्षेत्रों में जो व्यापारी खुशी-खुशी माल लोड करते थे, आज बदहाल स्थिति में हैं. दिसंबर में राज्य में चुनाव हुए, जिस पर देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजर थी. इस चुनाव को मोदी के गवर्नेंस पर जनमत संग्रह की तरह माना जा रहा था. गुजरात के मतदाताओं ने नई स्टेट असेंबली के लिए वोट किया. मोदी की पार्टी ने बहुमत तो हासिल कर लिया पर उसे 16 सीटें गंवानी पड़ी.
संदेश साफ था- मोदी की पार्टी बीजेपी नंबर 1 तो है लेकिन अब पहले वाला जादू नहीं दिखा. कपड़े की फैक्ट्री चलाने वाले मनीष पटेल कहते हैं, ‘मोदी ने हमारे बिजनस को नुकसान पहुंचाया और हम दिखाना चाहते थे कि हम भी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं.’ उनका इशारा चुनाव में मिली कम सीटों की तरफ था. पटेल ने शिकायत की कि मोदी के शासन में ऐसा ही हुआ, जैसे पहले हम फर्स्ट क्लास में थे और अब हम 10th क्लास में पहुंच गए हैं. उन्होंने बताया, ‘जीवन में पहली बार मैंने कांग्रेस को वोट दिया, मोदी की पार्टी बीजेपी को नहीं दिया.