एक्सक्लूज़िव: जनसंघ प्रमुख श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गांधी के हत्यारों को बचाने के लिए चंदा जुटाया था
महात्मा गांधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की भूमिका पर राहुल गांधी की टिप्पणी और उनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से शुरू हुई बहस में एक महत्वपूर्ण सवाल आरएसएस और हिन्दू महासभा के आपसी संबंध का है.
महात्मा गांधी की हत्या के लिए हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं को दोषी पाते हुए सजा सुनाई गई थी.
आरएसएस का कहना है कि वो हमेशा से वैचारिक रूप से हिन्दू महासभा से अलग रही है. आरएसएस से जुड़े अखबार ऑर्गनाइज़र के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने भी कैच पर छपे अपने एक लेख में यही तर्क दिया.
लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों की मानें तो आरएसएस और महासभा भारत विभाजन से पहले से ही एक दूूसरे के करीबी रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी के आदर्श और भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिन्दू महासभा के माध्यम से महात्मा गांधी के हत्या के अभियुक्तों के कानूनी बचाव के लिए पैसे जुटाने वालों में शामिल थे. उस समय मुखर्जी न केवल हिन्दू महासभा से जुड़े हुए थे बल्कि जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री भी थे.
पटेल और मुखर्जी का पत्राचार
जब सरदार वल्लभभाई पटेल ने मुखर्जी से इस बाबत पूछा तो उन्होंने सवाल को टालने की कोशिश की. मुखर्जी ने पटेल से कहा कि वो केवल एक अभियुक्त विनायक दामोदर सावरकर के बचाव के लिए चंदा जुटा रहे हैं, बाकियों के लिए नहीं. सरदार पटेल को 16 जून 1948 को लिखे एक पत्र में मुखर्जी ने लिखा:
प्रिय सरदारजी,
गांधीजी हत्या के मुकदमे में एक अभियुक्त के बचाव के लिए चंदा इकट्ठा करने के बारे में आपका पत्र मिला. आज सुबह (एलबी) भोपाटकर (उस समय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष) से इस मामले पर मेरी बात हुई थी. मुझे लगता है कि इस मामले में थोड़ी गलतफहमी हुई है… हिन्दू महासभा ने किसी बचाव समिति को नहीं नियुक्त किया है. आल इंडिया डिफेंस कमेटी पूरी तरह स्वतंत्र संगठन है. खुद आपने जैसा इशारा किया है, कुछ लोग बचाव के लिए पैसा जुटा रहे हैं, खासकर वीडी सावरकरजी के लिए…
जहां तक दूसरे अभियुक्तों की बात है, अदालत में मुकदमे के पहले दिन ही ये मुद्दा उठा था. अदालत की अनुमति से कुछ अभियुक्तों ने अपने बचाव के लिए भोपाटकर से जरूरी इंतजाम करने के लिए कहा. और जैसा अदालत में कहा गया वैसा ही हुआ भी.
…लेकिन जैसा मैंने पहले ही कहा, पैसा मुख्यतः सावरकर के बचाव के लिए जुटाया गया है और उसे इस्तेमाल के लिए बचाव समिति को दे दिया गया है.
दूसरे शब्दों में कहें तो बचाव समिति को पैसा दे दिया गया जिसने उसका अपने हिसाब से इस्तेमाल किया. ये साफ है कि बचाव समिति को अदालत में हिन्दू महासभा के सभी जरूरतमंद अभियुक्तों के बचाव में मदद करना था.
सरदार पटेल मुखर्जी के जवाब से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने मुखर्जी से उनके संगठन के बारे में और स्पष्टीकरण मांगा. उन्होंने 9 सितंबर 1948 को मुखर्जी को भेजे अपने जवाब के साथ भोपाटकार का वो बयान भी भेजा था जिसमें उसने गांधी जी के हत्या के अभियुक्तों की मदद के लिए पैसे जुटाने की सफाई दी थी. दुर्गा दास द्वारा संपादित सरकार पटेल के चुनिंदा पत्रों के छठे खंड में ये पत्राचार मौजूद थे.
“पटेल इस बात पर स्पष्ट थे कि आरएसएस और हिन्दू महासभा वैचारिक सहोदर थे”
भोपाटकर ने भी अपनी सफाई में तर्क दिया था कि बचाव समिति को पूरे भारत की ‘हिन्दू सभाओं से पैसा मिला है’ और ये सभाएं केंद्रीय संस्था अखिल भारतीय हिन्दू महासभा से अलग हैं. उन्होंने भी ये माना कि पैसे का उपयोग मुकदमे में सावरकर के बचाव के लिए किया जाएगा.
भोपाटकर ने लिखा, “बचाव समिति हिन्दू महासभा के सभी कार्यकर्ताओं को जिन्हें कानूनी मदद की जरूरत हो, की सहायता के लिए बनाई गई थी.”
गांधीजी की हत्या के अभियुक्त नाथुराम गोडसे, दिगंबर, बागड़े, गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, और मदनलाल पाहवा हिन्दू महासभा के सदस्य हैं.
भोपाटकर ने स्वीकार किया था कि “पूरे देश की हिन्दू सभाओं को मुकदमे के लिए पैसा” जुटाने के लिए निर्देश भेजा गया था. उन्होंने ये भी माना कि हिन्दू महासभा के जुटाए पैसे में से ‘एक आना’ में भी मुकदमे में नहीं इस्तेमाल किया गया. उनके अनुसार, “हिन्दू महासभा के भवन में बचाव समिती को जो कमरे दिए गए थे वो किराए पर दिए गए थे.”
क्या गांधीजी की हत्या के अभियुक्तों का बचाव करने वालों को कमरा देना केवल आर्थिक मामला है?
सरदार पटेल ने इन पत्रों को बहुत ही तीखा जवाब दिया. मुखर्जी का पत्र मिलने के एक दिन बाद ही 10 सितंबर 1948 को लिखे पत्र में पटेल ने कहा,
प्रिय डॉक्टर श्यामा प्रसाद
…ये लगभग साफ है कि हिन्दू महासभा को बचाव समिति के लिए पैसा जुटाने के लिए कहा जा रहा है. इसलिए ये कहना बेकार है कि हिन्दू महासभा आधिकारिक तौर पर इससे नहीं जुड़ा हुआ है. सावरकर के दोस्तों और समर्थकों के लिए ये खुला सच है कि पैसे जुटाने के लिए अलग संस्था बनाई गई है. अगर हिन्दू महासभा का आधिकारिक संगठन ये काम कर रहा है तो इसका एक ही मतलब है कि हिन्दू महासभा ऐसा कर रही है. आपने पिछली बार जो पत्र लिखा था उसके बाद, मैं इसपर काफी हैरान हूं.
इस पत्राचार से साफ है कि हिन्दू महासभा ने ‘ऐसा किया था.’ लेकिन क्या आरएसएस भी इसमें शामिल थी? और दोनों संगठनों में क्या संबंध था?
आरएसएस और हिन्दू महासभा
मुखर्जी और सरदार पटेल के पत्राचार से ये भी साफ है कि आरएसएस और हिन्दू महासभा में नाभि-नालबद्ध संबंध था. गांधी जी की हत्या के पहले आई दिल्ली पुलिस की सीआईडी रिपोर्ट भी इस संबंध को स्थापित करती है.
मई 1948 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सरदार पटेल से गांधी जी की हत्या के बाद हिरासत में लिए गए हिन्दू महासभा और आरएसएस के सदस्यों के रिहा कराने की मांग की थी.
पटेल को 4 मई 1948 को लिखे पत्र में मुखर्जी ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए हिन्दू महासभा के सदस्यों को रिहा करने की मांग की थी. उसी पत्र में उन्होंने “आरएसएस कार्यकर्ताओं का मामला भी हल करने के लिए कहा था.”
मुखर्जी ने लिखा था, “हैदराबाद और कश्मीर में जो कठिन हालात पैदा हो सकते हैं उनके मद्देनजर हमें समाज के सभी वर्गों में आत्मविश्वास और सुरक्षा का भाव पैदा करना जरूरी है, बस रिहाई के आदेश से कानून-व्यवस्था न बिगड़े.”
अगर हिन्दू महासभा और आरएसएस में कोई वैचारिक या सांगठनिक संबंध नहीं होता तो क्या मुखर्जी एक ही सांस में दोनों संगठनों की पैरवी पटेल से करते?
पटेल की राय
पटेल दोनों संगठनों के नजदीकी संबंधों के लेकर स्पष्ट थे. हिन्दू महासभा के बारे में पटेल लिखते हैं, “हम इस सच से आंखें नहीं चुरा सकते कि इस त्रासदी पर महासभा के काफी सदस्यों ने खुशी मनाई थी और मिठाई बांटी थी.”
“नाथुराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे ने 1994 में कहा था कि नाथुराम ने कभी आरएसएस नहीं छोड़ा था”
पटेल ये भी मानते थे कि हिंसक कार्रवाई में यकीन रखने वाले “महासभा के सदस्य कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं.”
आरएसएस के बारे में पटेल लिखते हैं, “यही बात आरएसएस के लिए सही है, और उसके संग एक खतरा और है जो सभी गुप्त सैन्य या अर्ध सैन्य संगठनों के साथ बुनियादी तौर पर होती है.”
पटेल एकमात्र व्यक्ति नहीं हैं जो दोनों संगठनों को वैचारिक सहोदर मानते थे. दिल्ली पुलिस की आपराधिक जांच शाखा ने 29 नवंबर 1947 को सूत्रों के आधार पर लिखा, “माना जाता है कि आरएसएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) और हिन्दू महासभा अगला चुनाव कई जगहों पर मिलकर लड़ सकते हैं. ये गठजोड़ होगा या नहीं ये अलग बात है. मुद्दा ये है कि दोनों गठजोड़ के बारे में सोच रहे हैं.”
आरएसएस और हिन्दू महासभा के बीच का संबंध सितंबर 1947 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के धनवंतरी और पीसी जोशी ने ‘ब्लीडिंग पंजाब वार्न्स’ नामक पर्चे में लिखा था.
इस पर्चे में लेखक लिखते हैं, “पंजाब में हाल ही में अब तक की सबसे बड़ी हिंसा हुई है. यहां हत्या, लूट और बलात्कार प्रशिक्षित गिरोह ने किया था. ये गिरोह आधुनिक हथियारों को चलाने में प्रशिक्षित हैं. इनमें मुस्लिम लीग के नेशनल गार्ड, अकालियों के शहीदी दल और महासभा का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल था.” पीसी जोशी ने भी अपने एक अन्य लेख में आरएसएस और हिन्दू महासभा के बीच नजदीकी संबंधों को रेखांकित किया था.
आज आरएसएस इस बात से इनकार करती है कि नाथुराम गोडसे उसका सदस्य था लेकिन इसका खंडन खुद नाथुराम के भाई गोपाल गोडसे ने किया है. गोडसे ने आधिकारिक तौर पर कहा था कि नाथुराम आरएसएस का सदस्य था और उसने कभी संगठन नहीं छोड़ा था.
फ्रंटलाइन पत्रिका को 28 जनवरी 1994 को दिए इंटरव्यू में गोपाल गोडसे ने कहा, “आप कह सकते हैं कि हमारी परवरिश हमारे घरों में नहीं आरएसएस में हुई थी. वो हमारे लिए परिवार की तरह था. नाथुराम आरएसएस के बौद्धिक कार्यवाह थे. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि वो आरएसएस छोड़ चुके थे क्योंकि आरएसएस और एमएस गोलवरकर गांधी की हत्या के बाद काफी मुश्किल में घिर गए थे. लेकिन उन्होंने कभी आरएसएस नहीं छोड़ा था.”
(वेबसाइट हिंदी कैच में भारत भूषण की रिपोर्ट)