नई दिल्ली : आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अचानक एक दिन टीवी पर खड़े होकर नोटबंदी का एलान कर दिया था . इस बड़े फैसले के बारे में सिर्फ चार लोगों को बताया गया था. न तो किसी अर्थशास्त्री से राय ली न किसी की सुनी. अब उनकी इस अर्थशास्त्र की महान समझ का नतीजा देश भुगत रहा है.
भारत की अर्थवस्था की दशकों की तरक्की पर पानी फिर गया है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फॉरम की रिपोर्ट में समावेशी विकास सूचकांक पर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में बेहद नीचे चला गया. भारत की हालत इस मामले में चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी खराब है.
भारत के पड़ोसी देश जिनकी अर्थव्यवस्था भारत से बेहतर है उनमें श्रीलंका 40वे स्थान पर, बांग्लादेश 34वे स्थान पर और नेपाल 22वे स्थान पर शामिल हैं. यही नहीं भारत से कहीं छोटे देश माली, युगांडा, रवांडा, बुरुंडी, घाना, यूक्रेन, सर्बिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, ईरान, मैसेडोनिया, मैक्सिको, थाईलैंड और मलेशिया भी अर्थव्यवस्था के नाम पर भारत से अमीर है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी वार्षिक बैठक की शुरुआत से पहले ही यह वार्षिक सूचकांक जारी किया. इस बैठक में दुनिया के बड़े नेता जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप भी शिरकत करेंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम इन देशों को कुछ मानकों के आधार पर ही इनका स्थान निर्धारित करती है.
इस रिपोर्ट का मतलब है कि भारत में लोगों का जीवन स्तर ठीक नहीं है. यहां का पर्यावरण लगातार खराब हो रहा है और आने वाली पीढियां ऋण के बोझ में दबी रहने वाली हैं. इन मानकों में डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट में भारत का पाकिस्तान और नेपाल जैसे विकासशील देशों से भी पीछे रहना चिंता करने लायक है.
पिछले साल 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में भारत 60 वां स्थान पर रहा था, जबकि चीन 15 वें और पाकिस्तान 52 वें स्थान पर था. उभरती अर्थव्यवस्था के नाम पर बेहद कम स्कोर होने के बावजूद तेजी से विकास करने वाले दस देशों में भारत ने अपनी जगह बनाई है.
अफसोस इस बात का है कि देश को यही पता है कि हम जबरदस्त तरक्की कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर तरह तरह के आंकडे़ जनता को हमेशा भरमाए रहते हैं.