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ये सिरफिरों का संगठन है. नाम है आज़ाद पुलिस. इसका काम है गैरकानूनी तरीके से काम करने वाले पुलिस वालों को दंड देना . कल जब ये संगठन बिना टोपी घूम रहे पुलिस वालों के चालान काट रहा था तो गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस का कहना है कि ये धोखा धड़ी का केस है , लेकिन संगठन के लोग कहते हैं कि वो क्रांतिकारी हैं. खुद को आजाद पुलिस बताने वाले यह तीनों लोग ऐसे पुलिसकर्मियों का चालान कर रहे थे, जो टोपी नहीं लगाए थे और उनके हाथों में डंडा भी नहीं था। रोचक बात है कि दो पुलिसकर्मियों ने उन्हें 500-500 रुपये देकर चालान भुगत भी लिया। एक सिपाही ने उनका विरोध किया और 100 नंबर पर सूचना दे दी। इसके बाद मौके पर पहुंची पुलिस तीनों को पकड़कर थाने ले गई।
यह मामला अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। इसके अलावा वह डंडा भी नहीं लिए हुए हैं, ऐसे में उनका चालान कटेगा। इसके साथ ही ब्रहमपाल ने दोनों सिपाहियों के चालान काट दिए।
वर्दी पहने आजाद पुलिस के तीन कथित अफसरों और चालान की कार्रवाई से सकपकाए दोनों सिपाही चुपचाप 500-500 रुपये का जुर्माना अदा करके चलते बने। इसके बाद तीन अन्य सिपाहियों को भी इन लोगों ने रोक लिया।
आज़ाद पुलिस का मामला सिर्फ पुलिस वालों के चालात तक ही सीमित नहीं है. इस संगठन के बारे में जितना जानते जाते हैं नयी नयी जानकारियां मिलती जाती है. इस संगठन को चलाने वाले शख्स का नाम ब्रह्मपाल प्रजापति है.ब्रह्मपाल पहले एक चाय की दुकान पर काम करता था क्योंकि उसके घरवाले उसे स्कूल नहीं भेज सके. लेकिन दुकान का मालिक गाली गलौज करता था तो ब्रह्मपाल मुंबई भाग गया. उसके बाद उसने गांव वापस लौटकर परचून की दुकान खोल ली और साथ में कविताओं और कहानियां लिखने लगा. अपने उपन्यासों पर ब्रह्मपाल ने फिल्म बनाने के लिए कई जगह हाथपैर मारे. उसकी कहानी किसी ने धोखा धड़ी से हथिया ली . शिकायत करने जब थे पहुचा तो हापुड़ की पुलिस ने उसकी मदद नहीं की. इसके बाद ब्रह्मपाल ने पुलिस से बदला लेने का काम शुरू कर दिया. इस से क्षुब्ध हो कर ब्रह्मपाल ने अनेक पत्र आला अधिकारियों को लिखे. उसके बाद आपबीती नौ मीटर कपड़े पर लिख कर प्रधान मंत्री स्व० राजीवगांधी को भेजा. कुछ समय बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से एक पत्र आया जिसमे उत्तरप्रदेश सरकार से मिलने के निर्देश दिए गए थे. लखनऊ मे सचिवालय मे गेट पर प्रवेशपत्र बनवाने के लिए मची होड़ में धक्का मुक्की होने से काँच की खिड़की टूट गयी और पुलिस ने जेल भेज दिया. आठ महीने पन्द्रह दिन की जेल काटने के बाद एक समाचार पत्र मे छपी उसकी खबर से प्रशासन सचेत हुआ और उसे मुक्त कर दिया गया. जेल से छूटने के बाद ब्रह्मपाल ने जेल के अंदर होने वाले भ्रष्टाचार और पुलिसिया अत्याचार की पोल तमाम समाचार पत्रों मे खोलनी शुरू कर दी. उसने बताना शुरू कर दिया कि जेल में पैसे के बदले जेल मे चरस, अफ़ीम, गाँजा सब कुछ आसानी से मिल रहा है. खुद पुलिस इसके बाद पुलिस और भ्रष्टाचार के खिलाफ ब्रह्मपाल का अभियान शुरू हो गया. ब्रह्म पाल सरकार को चिट्ठी लिखकर आज़ाद पुलिस के लिए भ्रष्ट अफसरों की रिमांड भी मांग चुका है. उसने अपने कफन के पैसे भी पहले ही जमा करा दिए हैं.
आज़ाद पुलिस के चालान नियम
– तीनों आरोपियों द्वारा काटे जा रहे चालान बुक की प्रत्येक रसीद पर नियम लिखे थे। इसमें यह लिखवाया गया है कि जो भी पुलिसकर्मी टोपी और डंडे के साथ नहीं होगा, उसका चालान होगा।
– चालान के आधे पैसे सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से यूपी पुलिस के कोष तक जाएंगे। बाकी के आधे पैसे आजाद पुलिस गाजियाबाद अपने पास रखेगी।
– इन पैसों से पुलिसकर्मियों के लिए टोपी और डंडे खरीदे जाएंगे और बाद में उन्हें वितरित किए जाएंगे।
सीओ सेकेंड ने बताया कि मथुरा कांड का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव भी कुछ ऐसा ही ग्रुप चलाता था। उनका कहना है कि पकड़ा गया एक आरोपी मनोज मथुरा का रहने वाला है। कहीं वह उस ग्रुप का सदस्य तो नहीं है, इस मामले की कविनगर पुलिस गहनता से जांच कर रही है।