आपका बैंक में पैसे रखना भी बना मुसीबत, सरकार की अजीब नीति से सावधान

नई दिल्ली : देश में कैश क्रंच है. बैंकों के पास पैसे नहीं हैं इसलिए एटीएम में भी नहीं हैं. इसकी वजह सरकार की अजीबों गरीब अनुभव हीन नीतियां हैं.
आप बैंक में पैसे क्यों रखना चाहेंगे अगर इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते वक्त अगर किसी ने अपने बैंकों में जमा पैसों की जानकारी देने में चूक जाएं तो आप पर भारी जुर्माना लगे.

आपने खबर पढ़ी होगी कि किस तरह  बैंक डिपोजिट ग्रोथ रेट पिछले 55 सालों में सबसे कम हो गया है. मार्च 2018 को खत्म हुए वित्त वर्ष में बैंक में लोगों ने 6.7 फीसदी की दर से पैसे जमा किए. यह 1963 के बाद सबसे कम है.

अब असली खबर पढ़े. लोग बैंकों में पैसा इसलिए जमा नहीं कर रहे क्यों कि अपने ही पैसे बैंक में रखने पर पचड़े बहुत हैं. हम नहीं कह रहे बल्कि एक्सपर्ट्स कहते है. एक्सपर्ट का कहना है कि अकाउंट में डिपॉजिट कैश की पूरी जानकारी रिटर्न फाइल करते वक्त देनी ज़रूरी है. अगर टैक्सपेयर्स ऐसा नहीं करता है तो कुल मिलाकर उसे 85 फीसदी टैक्स और जुर्माना देना पड़ता है.

अकाउंट में कैश डिपॉजिट करते वक्त सावधान रहना चाहिए. जिससे टैक्स की देनदारी आपके ऊपर भारी ना पड़ जाए. क्योंकि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त सेक्शन 115बीबीई के तहत टैक्सपेयर्स को आय-व्यय का सोर्स दिखाना जरूरी होता है. अगर टैक्सपेयर्स ऐसा नहीं करता या वह सही सोर्स नहीं दिखा पाता तो उसे डबल टैक्स देना होता है.

टैक्स एक्सपर्ट मुकेश पटेल का कहना है कि अकाउंट में कैश डिपॉजिट करते वक्त सावधान रहना चाहिए. जिससे टैक्स की देनदारी आपके ऊपर भारी ना पड़ जाए. क्योंकि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त सेक्शन 115बीबीई के तहत टैक्सपेयर्स को आय-व्यय का सोर्स दिखाना जरूरी होता है. अगर टैक्सपेयर्स ऐसा नहीं करता या वह सही सोर्स नहीं दिखा पाता तो उसे डबल टैक्स देना होता है.

आसान शब्दों में समझें तो अगर कोई टैक्सपेयर्स बैंक में डिपॉजिट रकम की जानकारी नहीं दे पता है तो उस पर 60 फीसदी टैक्स,15 फीसदी सरचार्ज और 3 फीसदी सरचार्ज देना चुकाना होता है. इसके अलावा सेक्शन 270एए में 10 फीसदी जुर्माना भी लग सकता है. कुल मिलाकर टैक्सपेयर्स को 85 फीसदी टैक्स और जुर्माना देना पड़ता है.

कैश को लेकर बदला ये नियम: वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तीन लाख रुपये से अधिक के नकद लेनदेन पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया था. वित्त विधेयक में संशोधन के तहत इस सीमा को कम कर दो लाख रुपये कर दिया गया है. टैक्स डिपार्टमेंट के मुताबिक यह अंकुश सरकार की किसी प्राप्ति, बैंकिंग कंपनी, डाकघर बचत बैंक या सहकारी बैंक पर लागू नहीं होता है.

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