गांधीनगर. गुजरात सरकार ने स्कूलों से संविधान निर्माता बाबा साहब आंबेडकर की किताबों को यह कहकर वापस ले लिया है कि वे ‘हिंदू विरोधी’ हैं. यह किताबें 5वीं से 8वीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाई जा रही थी. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक सरकार का कहना है कि इस तरह की शिक्षा से हिंदू धर्म के प्रति बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
यह किताबें आंबेडकर की 125वीं जयंती समारोह के तहत बच्चों को बांटी गयीं थीं. पब्लिशर ने इस किताब में 1956 में बाबा साहब द्वारा हिंदू से बौद्ध बनने के दौरान ली गयीं ’22 शपथ’ का भी उल्लेख किया हुआ था. सरकार ने इसी कंटेंट पर ऐतराज जताते हुए किताब को वापस लिया है. यह किताब गुजरात के दलित स्कॉलर और सामाजिक न्याय एंव विकास विभाग में कार्यरत पीए परमार ने लिखी है.
जय भीम
Dr अंबेडकर जी के लिखीत साहित्य से मानव को समाज में फैला हजारो वर्षो का अंध विश्वास मीटाने की प्रेरणा प्राप्त होती हैं।
यही अंध विश्वास कायम रहे, पाखंड को बढावा मिले,और समाज भ्रम के सहारे यु हि अपनी हानी करता रहे, यही कुछ कुंठित लोग(मानसिक रोगी) इनको मंजूर है।
इसिलिये हमेशा सत्य की राह पर चलने Dr. ambedkar
इन्हे नामंजूर है।
ऐसा कुछ नही है । बाबा साहब की पुस्तक में बुराई पाखंड अन्धविस्वास के खिलाफ है ।उस पवित्र पुस्तक को हर इंसान को पढ़ना चाहिए ताकि समाज को एक सच्चे नागरिक होने का गर्व महसूस कर सके । धर्म की बात हुई तो पहले मानव उसके बाद धर्म आता है ।जब तक मानव नही था तो उस समय कौन सा धर्म था । बौद्ध धर्म नही धम्म है क्योंकि धम्म का अर्थ करुणा दया आचार विचार व्यवहार होता है । इसलिए तो हम कहते हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस मे है भाई भाई ।
दलित का शोषण होता रहे अज्ञानता के अंधेरे मे रहे