हमारी महिलाओं को अगर उनके अधिकार ही पता चल जाएं तो उनका जीवन बदल जाए. कम से कम बेहतर तो हो ही जाए. जब तक वो अपने हक नहीं जानेंगी , उनके लिए लड़ेंगी कैसे. यहां जानिए महिलाओं के 10 हक जो संविधान देता है…
- समान वेतन का अधिकार- समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता.
- काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार- काम पर हुए यौन उत्पीड़न अधिनियम के अनुसार आपको यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है.
- नाम न छापने का अधिकार- यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को नाम न छापने देने का अधिकार है. अपनी गोपनीयता की रक्षा करने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला अकेले अपना बयान किसी महिला पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में या फिर जिलाधिकारी के सामने दर्ज करा सकती है.
- घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार- ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है. आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.
- मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार- मातृत्व लाभ कामकाजी महिलाओं के लिए सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि ये उनका अधिकार है. मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक नई मां के प्रसव के बाद 12 सप्ताह(तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती नहीं की जाती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं.
- कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार- भारत के हर नागरिक का ये कर्तव्य है कि वो एक महिला को उसके मूल अधिकार- ‘जीने के अधिकार’ का अनुभव करने दें. गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक(लिंग चयन पर रोक) अधिनियम (PCPNDT) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है.
- मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार- बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है. स्टेशन हाउस आफिसर(SHO) के लिए ये ज़रूरी है कि वो विधिक सेवा प्राधिकरण(Legal Services Authority) को वकील की व्यवस्था करने के लिए सूचित करे.
- रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार- एक महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है.
- गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार- किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उसपर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही की जानी चाहिए.
- संपत्ति पर अधिकार- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है.