वामपंथियों ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में भगत सिंह को याद किया । पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस (14 अगस्त) की पूर्व संध्या पर यह कार्यक्रम आयोजित हुआ। पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐसे आयोजन कभी नहीं हुआ था। करीब 500 लोगों के सामने दिखाई गई इस डॉक्युमेंट्री में महात्मा गांधी का भी एक सीक्वेंस मौजूद था। डॉक्युमेंट्री बनाने वाले पूर्व बीबीसी संवाददाता हफीज चांचड़ बताते हैं, ”हमें शानदार रिस्पांस मिला। थियेटर खचाखच भरा हुआ था। वहां विश्वविद्यालय से आए ज्यादातर नौजवान थे। वहां इंकलाब जिंदाबाद और लाल सलाम के नारे भी लगे।” नाटक को निर्देशित करने वाले जैनब डार ने कहा, ”कार्यक्रम को सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए प्रचारित किया गया था, इसमें एंट्री मुफ्त थी। हम सिर्फ अपनी बात को फैलाना चाहते थे।” डारे ने कहा, ”ज्यादातर पाकिस्तानी भगत सिंह को भारतीय के तौर पर देखते हैं, लेकिन वह ब्रिटिश के खिलाफ आजादी की लड़ाई के हीरो थे। हम लोगों को सिर्फ यह बताना चाहते थे यह वो शख्स है जिसका कै़द (पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना) ने भी ब्रिटिश के खिलाफ सार्वजनिक रूप से (सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में) बचाव किया था।”
यह शो एक ओपन एयर थियेटर में आयोजित किया गया। पाकिस्तान की नेशनल काउंसिल ऑफ ऑर्ट्स ने पहले इस शो की इजाजत नहीं दी थी। काउंसिल की तरफ से मिले ईमेल में कहा गया था, ”कमेटी ने यह फैसला किया है कि स्वतंत्रता दिवस समारोह और कुछ हद तक आपकी डॉक्युमेंट्री के विषय के चलते (जाे कि) काउंसिल के नियमों के खिलाफ हैं।” एक और ऑडिटोरियम ने भी शो करने से इनकार कर दिया। डॉक्युमेंट्री और नाटक के जरिए यह दिखाने की कोशिश की गई है कि पाकिस्तान की वर्तमान पीढ़ी के लिए भगत सिंह क्या मायने रखते हैं। भगत सिंह का रोल 22 वर्षीय मोहम्मद असलम ने किया है। उन्होंने कहा, ”मुझे कभी नहीं पता था कि उनका जन्म अविभाजित पाकिस्तान में हुआ था। असल में, उनका जन्म मेरे पैतृक घर फैसलाबाद में हुआ था।”
पाकिस्तान में भगत सिंह को लोकप्रिय बनाने का यह पहला प्रयास नहीं है। 2012 में पंजाब की राज्य सरकार ने शादमान चौक (जहां भगत और उनके कामरेड को फांसी दी गई थी) का नाम बदलकर भगत सिंह चौक कर दिया गया था। मामला अब कोर्ट में है। 2014 में, अदालत ने बंगा, फैसलाबाद में जिस घर में भगत सिंह का जन्म हुआ, उसे भगत सिंह मेमोरियल और हेरिटेज साइट घोषित कर दिया था।