भारतीय रेलवे के एक इंजीनियर ने ट्रांसपोर्ट की टैक्नॉलाजी में क्रांति ला दी है. दुनिया भर की बडी बड़ी कंपनियां उसके पेटेंट मांग रही हैं. एलस्ट्राम उसे मुंह मांगी कीमत देने को तैयार है लेकिन अश्विनी नाम का ये इंजीनियर अपनी टैक्नोलॉजी सिर्फ रेल्वे को देना चाहता है. कैटरपिलर ट्रेन के नाम से मशहूर हो चुके इस नए नवेले ट्रांसपोर्ट कॉन्सेप्ट पर दुनिया के जाने-माने तकनीकी संस्थान मैसाच्यूसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी एमआईटी ने भी मुहर लगा दी है. रेलवे में आईआरटीएस अधिकारी अश्विनी कुमार उपाध्याय के कैटरपिलर ट्रेन के कॉन्सेप्ट को एमआईटी के क्लाइमेट कोलैब कॉन्टेस्ट में पॉपुलर कैटेगरी और जजेज च्वाइस दोनों में ही चुना गया है.
अश्विनी कुमार को कैटरपिलर ट्रेन का आइडिया उनको तब आया, जब वे सिंगापुर में एमआईटी की स्कॉलरशिप पर अपना रिसर्च पूरा कर रहे थे. यहां पर उनकी मुलाकात एक अमेरिकी इंजीनियर एमिल जैकब से हुई. दोनों ने डेढ़ साल में एक अनूठे कॉन्सेप्ट को लेकर काम किया और सामने आया एक क्रांतिकारी आइडिया.
दरअसल कैटरपिलर ट्रेन का कॉन्सेप्ट काफी सरल है और दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों की ट्रैफिक समस्या के लिए एक स्थाई हल है. खास बात ये है कि इसमें मेट्रो ट्रेन के मुकाबले लागत लागत महज पंद्रहवां हिस्सा है. इसके अलावा दिल्ली जैसे शहर में बढ़ती कारों के बीच छोटी-छोटी गलियों में लास्ट माइल कनेक्टिविटी देना मुश्किल हो गया है.
कैटरपिलर ट्रेन सिस्टम में पूरी की पूरी ट्रेन व्यवस्था सड़क के ऊपर ही बनाई जा सकती है. आर्क के आकार में खंबे लगाकर इनके ऊपर रेल पटरी बिछाई जाएगी. इन पटरियों पर 20 लोगों के बैठने के लिए डिब्बे चलाए जाएंगे. खास बात ये है कि ये डिब्बे दोहरे स्तर पर चलेंगे. आधे डिब्बे पटरियों पर लटक कर तो वहीं आधे डिब्बे पटरियों के ऊपर चलेंगे. ये डिब्बे ऐसे होंगे कि इनमें चारों तरफ गेट होंगे और ये जीपीएस के जरिए आटोमेटेड तरीके से बिजली के जरिए चलेंगे. इन डिब्बों में आठ जोड़ी छोटे पहिए लगे होंगे जो इस ट्रेन को चलाएंगे.
कैटरपिलर ट्रेन को ड्राइवर की जरूरत नहीं होगी और इसके स्टेशन दो पटरियों के क्रॉस सेक्शन पर भी होंगे. डिब्बों में सिर्फ और सिर्फ बैठने की ही व्यवस्था होगी. इन डिब्बों में यात्री के सामने स्क्रीन होगी जिसमें वो अपनी लोकेशन चुन सकेगा. ट्रेन यात्री को उचित स्टेशन पर उतार देगी. अगर ट्रेन फुल है और किसी स्टेशन पर कोई यात्री उतर नहीं रहा है तो वो ट्रेन उस स्टेशन पर नहीं रुकेगी. इससे यात्रियों को जल्दी पहुंचाने में मदद मिलेगी. इस ट्रेन को 100 किलोमीटर प्रति घंटे की औसत स्पीड पर चलाया जा सकता है.
फिलहाल अश्विनी कुमार ने अपने कॉन्सेप्ट को पेटेंट कराने के लिए अमेरिका और इंडिया में आवेदन किया है. जीई और अल्स्ट्राम जैसी बड़ी कंपनियां लगातार अश्विनी के संपर्क में हैं. लेकिन इन कंपनियों ने उनके पेटेंट को खरीदने पर ज्यादा जोर दिया है लेकिन अश्विनी अपना कंसेप्ट भारत सरकार को देना चाहते हैं.