क्या मरने के बाद किसी को बाप बनने दिया जा सकता है ? कानून कहता है ना लेकिन दिल्ली की एक महिला की इस गैर कानूनी लेकिन विवादास्पद मांग ने बहुत बड़ी बहस खड़ी कर दी है. कुछ साल बाद ही इस महिला के पति की मौत हो गई. महिला अपने पति के बेटे की मां बनना चाहती थी. उसने डॉक्टरों से कहा कि वे उसके मरने वाले पति का शुक्राणु दे दें ताकि वह मां बन सके. इसी से बहस शुरू हुई. एम्स के डॉक्टरों ने हाल ही में ह्यूमन रीप्रोडक्टिव साइंसेज के जर्नल में छपे एक लेख में इस केस के बारे में लिखा है कि दिल्ली में एक महिला ने अपने मरने वाले पति के शुक्राणु को निकालकर उसे दिए जाने की अपील की थी.
डॉक्टरों को ये अपील खारिज करनी पड़ी क्योंकि भारत में किसी मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु को निकालने के बारे में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं. लेकिन इस केस ने इस बात की बहस छेड़ दी है कि भारत को मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु के उपयोग के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है.
डॉक्टरों का कहना है कि किसी व्यक्ति की मौत के एक दिन बाद तक भी उसका शुक्राणु उसके टेस्टीकुलर कैविटी में सुरक्षित रहता है. सबसे बड़ी बात मरने वाले व्यक्ति के शरीर से शुक्राणु निकालने की प्रक्रिया भी बेहद आसान है और डॉक्टरों के मुताबिक इसमें महज पांच मिनट का ही वक्त लगता है. इसके लिए बस उसके टेस्टीज को अलग करके उससे शुक्राणु निकालना होता है.
पास्चमस या पोस्टमॉर्टम स्पर्म रिट्रीवल (PMSR) यानी की ‘मरणोपरांत शुक्राणु को फिर से प्राप्त करने’ पर पूरी दुनिया में पिछले कई दशक से बहस जारी है. क्या किसी मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु से बच्चे पैदा करना नैतिक और सामाजिक तौर पर सही है? कई देश इस मामले में भारत से कई कदम आगे बढ़ चुके हैं.
इस बात पर लंबे समय से बहस चलती रही है कि क्या किसी मरने वाले व्यक्ति का पिता बनना सही है? (तस्वीर: लाइव साइंस से साभार)
लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन सहित कुछ अन्य देशों में मरने वाले व्यक्ति की सहमति के बावजूद पास्चमस शुक्राणु रिट्रीवल यानि मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु को निकालने पर बैन है तो वहीं यूके में लिखित सहमति के बाद मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु को निकालने की अनुमति है जबकि इजराइल में मरने वाले व्यक्ति का शुक्राणु निकाला तो जा सकता है लेकिन इसे उपयोग किया जाए या नहीं इसका फैसला एक जज ही कर सकता है.
अमेरिका में इसे लेकर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं लेकिन वहां कुछ मामलों में अंगदान के कानून के तहत मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु को निकालने की अनुमति दी गई है. लेकिन फिर भी इस बात पर अब भी बहस जारी है कि क्या किसी मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु से बच्चे पैदा करना नैतिक और धार्मिक तौर पर सही है?
किसी मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु को निकालने को लेकर ज्यादातर लोगों की आम राय ये है कि इसमें उस व्यक्ति की सहमति शामिल होना अनिवार्य होना चाहिए जिसका शुक्राणु निकाला जाना है. इसके तहत किसी जीवित व्यक्ति या मरणासन्न व्यक्ति की सहमति से उसके मौत के बाद ऐसा किया जा सकता है. यूके में डोनर की सहमति के बाद ही ऐसा करने का नियम भी है.
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लेकिन दिक्कत उन मामलों में है जब किसी व्यक्ति की अचानक ही मौत हो जाए, तब भला उसकी सहमति इस मामले में कैसे ली जाएगी? ऐसे में एक राय ये है कि उसकी वाइफ और परिजनों की सहमति को तवज्जो दी जाए, बशर्ते उस व्यक्ति ने अपनी मृत्यु से पहले ऐसा करने पर आपत्ति न जताई हो.
मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु निकालने को लेकर एक सवाल ऐसे शुक्राणु से पैदा होने वाले बच्चे के पालन-पोषण के बारे में भी किया जाता है. क्या बिना पिता के किसी बच्चे को दुनिया में लाना सही है?
मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु निकालने की अनुमति दिए जाने के कुछ चर्चित मामलेः
द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस में 30 साल की उम्र में अपने पति की मौत हो जाने के बाद गोमेज टुर्री ने भी अपने मरने वाले पति के शुक्राणु से प्रेग्नेंट होने की अपील की थी. टुर्री और उनके पति ने दो साल पहले कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले ये शुक्राणु प्रीजर्व करके रखे थे.
शुरू में तो कोर्ट ने फ्रेंच कानूनों के मुताबिक ये अपील ठुकरा दी लेकिन बाद में काउंसिल ऑफ स्टेट के जज ने टुर्री के मामले को विशेष केस करार दिया और कहा कि टुर्री के पति की बीमारी ने उन दोनों की बच्चा पैदा करने की योजनाओं को पूरा नहीं होने दिया.
1984 में फ्रांस में कृत्रिम गर्भाधान की इजाजत न होने के बावजूद एक कैंसर मरीज की 23 वर्षीय विधवा कोरिनीको इसकी इजाजत दी गई थी. कोरिनी की विवाह के दो दिन बाद ही उसके पति की कैंसर की वजह से मौत हो गई थी. कोरिनी के वकील ने तर्क दिया कि यह उसके पति की आखिरी इच्छा थी. उसने कहा, ‘एक मरने वाले व्यक्ति को अपनी वाइफ के गर्भ में जीवन के सांस लेने का और ये साबित करने का अधिकार है कि प्यार मौत से भी ज्यादा ताकतवर है.’
इन तमाम शंकाओं और अशंकाओं के बीच ज्यादातर लोगों का मानना है कि इस प्रक्रिया में मरने वाले व्यक्ति, उसके परिवार और भविष्य में पैदा होने वाले बच्चे के हितों को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए.
उचित कानून के अभाव में दिल्ली की उस विधवा की मां बनने की इच्छा तो अधूरी रह गई. लेकिन उम्मीद है कि दुनिया के बाकी देशों की तरह भारत में भी मरने वाले व्यक्ति के शुक्राणु के उपयोग के बारे में न सिर्फ बहस होगी बल्कि कानून भी बनेगा.