महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। अजित पवार के शिंदे सरकार में शामिल होने की खबर आ रही है। अजित पवार ने महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम की शपथ ले ली है। दरअसल पार्टी के 53 में से 30 विधायक अजित पवार के साथ हैं, जो कि एक बड़ी मजबूती वाली बात है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि अब एनसीपी प्रमुख रहे शरद पवार का क्या होगा? क्योंकि इस वाकये के बाद से शरद पवार की राजनीति को एक बड़ा झटका लगेगा, जिससे उबर पाना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा। शरद पवार की पार्टी एनसीपी में अनदेखी बगावत की बड़ी वजह निकलकर सामने आ रही है। माना जा रहा है कि बीते दिनों पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद से शुरू हुए नाटक के बाद जिस तरह से प्रफुल्ल पटेल और बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया, उससे पार्टी का एक बड़ा धड़ा नाराज चल रहा था।
अजित पवार के शिंदे-बीजेपी सरकार में शामिल होने के बाद कहा जा रहा है कि वे एनसीपी को भी तोड़ सकते हैं। इस पूरे मामले को एक बार वैसे ही जोड़कर देखा जा रहा है, जिस तरह से एकनाथ शिंदे में पार्टी विधायकों के साथ बगावत कर शिवसेना को तोड़ लिया था और फिर पार्टी पर अपना दावा किया था। पार्टी तोड़ने लेने के दावे की हकीकत तो देखें तो अजित पवार के साथ एनसीपी के 35 से ज्यादा विधायकों के अलावा पार्टी के तीन सांसद भी हैं। अजित पवार के एनसीपी विधायकों की बैठक बुलाने पर शरद पवार सफाई देते नजर आए। पवार ने कहा कि, ‘मुझे ठीक से नहीं पता कि यह बैठक क्यों बुलाई गई है? लेकिन विपक्ष के नेता होने के नाते उन्हें (अजित पवार) को विधायकों की बैठक बुलाने का अधिकार है। वह ऐसा नियमित रूप से करते हैं। मुझे इस बैठक के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। यह स्थिति शरद पवार के लिए राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
अजित पवार की बढ़ते हुए सत्ताधारी ताकत के सामर्थ्य के सामक रूप में, एनसीपी को अपनी पार्टी को जीवित रखने और सत्ता में बने रहने के लिए नए रणनीतिक चरण उठाने की जरूरत हो सकती है। यह एक बड़ा परिवर्तन हो सकता है जो महाराष्ट्र की सियासत में नए मोर्चों और गठबंधनों को उजागर कर सकता है। इस वक्तव्य से स्पष्ट होता है कि महाराष्ट्र की सियासत में अजित पवार के उभरते रुझानों ने एनसीपी और शरद पवार के लिए एक नया राजनीतिक दौर आरंभ किया है। अब यह देखना होगा कि कैसे इस बदलते माहौल में शरद पवार और एनसीपी पार्टी अपनी राजनीतिक सामरिकता को बनाए रख पाते हैं और वे महाराष्ट्र की सत्ता में अपनी अहमियत को बनाए रख सकते हैं या नहीं।