3 मई से मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बीच सेना ने AFSPA (आर्म्ड फोर्स स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट) की मांग की है। मणिपुर में भारतीय सेना और असम राइफल की टुकड़ियां मौजूद हैं। लेकिन AFSPA ना होने की वजह से सेना मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर सम्भाल तो रही हैं लेकिन कोई एक्शन नहीं ले पा रही है। इसलिए इसकी मांग की जा रही है। मणिपुर में जारी जातीय हिंसा में करीब 140 लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 3000 लोग घायल हैं। हालात पर काबू पाने के लिए मणिपुर में इस समय मुख्यमंत्री के कहने के बाद 3 मई से लेकर अभी तक भारतीय सेना और असम राइफल की कुल मिलाकर 123 टुकड़ियां तैनात की गई हैं। लेकिन आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट (AFSPA) ना होने की वजह से पूरी ताकत के साथ सेना मणिपुर में लॉ एंड ऑर्डर सम्भाल तो रही हैं लेकिन कोई कड़ा एक्शन नहीं ले पा रही।
यह सेना, राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों को हत्या करने, घरों की तलाशी लेने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने के लिए गोली मारने की परमीशन देता है, जिसका उपयोग गृह मंत्रालय द्वारा अशांत घोषित किए गए क्षेत्रों में विद्रोहियों द्वारा संभावित है। AFSPA तब लागू किया जाता है जब आतंकवाद या विद्रोह का मामला होता है और भारत की क्षेत्रीय अखंडता खतरे में होती है।
इस कानून के लागू होने के बाद सुरक्षा बल किसी व्यक्ति को उचित संदेह के आधार पर या जिसने संज्ञेय अपराध किया है या करने वाला है,बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है। यह सुरक्षा बलों को अशांत क्षेत्रों में उनके कार्यों के लिए कानूनी छूट भी प्रदान करता है। जबकि सशस्त्र बल और सरकार आतंकवाद और विद्रोह का मुकाबला करने के लिए अपनी आवश्यकता को सही ठहराते हैं, आलोचकों ने अधिनियम से जुड़े संभावित मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों की ओर इशारा किया है।
इस कानून की जरुरत क्या है अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहा है तो बता दें कि अभी जो ससेना तैनात है, उन्हें चाहे घर जले या लूट हो, इस स्थिति में केवल कानून व्यवस्था बनाये रखने के जिम्मा है। अगर सेना कोई एक्शन लेती है तो मजिस्ट्रेट की मौजूदगी जरूरी है, लेकिन इस समय के हालात में मजिस्ट्रेट मिलना बेहद मुश्किल हो रहा हैं। 63 टुकड़ियां जो अभी मणिपुर की इंफाल घाटी में तैनात हैं, उनके लिये मजिस्ट्रेट की मौजूदगी संभव नहीं है।