राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तारीखें तय होने के बाद सिर्फ 6 महीने से भी कम समय बचा है। हालांकि, कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच रिश्तों की जगह मुद्दों की बहस और संघर्ष ले रही है। इस परिस्थिति में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। इस बैठक में दूरियों को दूर करने का प्रयास भी किया गया है।
सचिन पायलट ने इस बैठक के बाद यह बयान दिया है, “मुझे पार्टी नेतृत्व द्वारा जो भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, मैं उसे पूरी मेहनत और समर्पण के साथ निभाने के लिए तैयार हूं।” वे आगे बढ़कर कहते हैं, “हमारी मीटिंग चार घंटे तक चली, हमने विधानसभा चुनाव से जुड़े हर मुद्दे पर चर्चा की। हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे और एंटी इनकमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) को तोड़ेंगे। चुनाव में हम भाजपा को हराएंगे।”
इसके साथ ही, सचिन पायलट ने कांग्रेस अभियान में अपनी भूमिका जारी रखने के लिए पार्टी के भीतर एक सम्मानजनक पद की इच्छा भी जाहिर की है। हालांकि, यह जानकारी सभी के सामने उजागर नहीं की गई है। इसके बावजूद, अशोक गहलोत सत्ता साझा नहीं करने के पक्ष में रह रहे हैं और उनका लक्ष्य अपने सामाजिक कल्याण परियोजनाओं के माध्यम से पार्टी का नेतृत्व संभालना है। इस परिस्थिति में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि राजस्थान संकट का हल कैसे निकालेगी? क्या इसमें छत्तीसगढ़ के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाएगा?
राजस्थान के चुनाव कांग्रेस के लिए वास्तव में महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस नेतृत्व की आशा है कि छत्तीसगढ़ के हालिया समाधान से प्राप्त सबकों को यहां लागू किया जाएगा। हाल ही में ही छत्तीसगढ़ की बैठक के बाद कांग्रेस ने टीएस सिंह देव को उप-मुख्यमंत्री नियुक्त किया था। ऐसा ही कुछ राजस्थान में भी हो सकतरहा है, जहां हरीश चौधरी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की चर्चा चल रही है। कांग्रेस पार्टी की यह उम्मीद है कि यह चुनाव में उप-मुख्यमंत्री के पद का उपयोग करके छत्तीसगढ़ के तरीके को लागू कर सके।
अभी तक का विवरण देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि राजस्थान में चुनावी युद्ध बड़े मुश्किल से लड़ा जा रहा है। कांग्रेस पार्टी को अपनी आंतरिक विवादों को हल करने और एकजुट होकर चुनाव लड़ने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के तरीके का अद्यतन और उसे राजस्थान की विशेषताओं के अनुरूप बनाने की कोशिश करना संभवतः उनकी मान्यता को बढ़ा सकता है। अगर ऐसा होता है, तो कांग्रेस के पक्ष में राजस्थान में चुनावी जीत की संभावना बढ़ सकती है।