दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर गाजियाबाद क्षेत्र में हुआ एक दर्दनाक हादसा, जिसमें एक स्कूल बस ने रॉन्ग साइड में चल रही कार के साथ टक्कर मारी है। यह घटना मंगलवार को घटी और इससे चारों ओर हड़कंप मच गया। स्कूल बस में सवार बच्चों और स्कूल कर्मचारियों के अलावा, कार में मौजूद लोगों को भी इस हादसे का शिकार बनना पड़ा।
घटना के पश्चात बताया जा रहा है कि मौके पर पहुंची रेस्क्यू टीम ने आठ लोगों को निकाला है जिनमें से दो की हालत गंभीर बताई जा रही है। सभी घायलों को नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उन्हें मेडिकल देखभाल दी जा रही है। हादसे के संबंध में जानकारी एक जांच अधिकारी ने दी है और मामले की जांच शुरू कर दी गई है।
इस हादसे के बाद एक बड़ा प्रश्न उठता है कि ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी किसे लेनी चाहिए? क्या यह सिस्टम की लापरवाही है जो जानलेवा घटनाओं की इजाज़त देती है? यह सवाल दरअसल सड़क सुरक्षा के मामले में एक गंभीर समस्या को उजागर करता है।
एक्सप्रेसवे और हाइवे पर हो रही रॉन्ग साइड ड्राइविंग जीवनों की कीमत को बहुत ही सस्ता बना रही है। यहां परिवारों को तबाह करने वाले हादसों की संख्या बढ़ती जा रही है। ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था के बावजूद यह समस्या नहीं कम हो रही है। लोग टोल चुकाते रहते हैं, लेकिन क्या सड़क सुरक्षा के लिए कोई वास्तविक प्रयास हो रहा है?
इस एक्सप्रेसवे का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. वही आपको बता दे की दिल्ली से मेरठ को जोड़ने वाली इस 82 किलोमीटर परियोजना का लगभग 90 प्रतिशत काम पूरा भी नहीं हुआ था की PM मोदी ने 7,500 करोड़ रुपये लगत की इस परियोजना के पहले चरण जिसकी लंबाई 8.36 किमी ही थी तभी इसका उद्घाटन कर दिया था। जल्दबाजी की वजह से इसके कई स्ट्रक्चर अधूरे बने हुए की इसे लोगो के लिए खोल दिया गया था जो की दिल्ली के निजामुद्दीन पुल से शुरू होकर दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर खत्म हो जाता था . इसके बाद मेरठ का सफर तय करने वाले यात्री नेशनल हाईवे 34 को इस्तेमाल कर रहे थे जो मात्र चार लेन का था और अब प्रधानमंत्री मोदी की यही जल्दबाजी दुर्घटनाओं का कारण भी बन रहा है.