भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश होने का गर्व महसूस कर रहा है। हाल ही की एक फैसले के बाद, भारत अब तकरीबन आधा चावल निर्यात करने वाले देश बन गया है। इस फैसले के पश्चात, खाद्य बाज़ार में चावल की दामों के बढ़ने की आशंका दुनिया भर में छाई हुई है। घरेलू बाज़ार में चावल की खुदरा क़ीमतों में पिछले एक साल में 11.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे लोगों की छाती पर एक चिंता का बोझ है। ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिछले महीने चावल की क़ीमतें 3 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।
इस समस्या का समाधान ढूंढते हुए सरकार ने पिछले साल नॉन-बासमती सफ़ेद चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाने का फैसला किया था। इससे यह उम्मीद हुई थी कि चावल की इस विशेष क़ीस्म की उपलब्धता सुनिश्चित होगी और उसकी दामों में कमी आएगी। हालांकि, इस निर्यात शुल्क के बावजूद, नॉन-बासमती सफ़ेद चावल के निर्यात में वृद्धि का समाचार आने से उदासीनता दिखाई दी गई है। नॉन बासमती सफ़ेद चावल के निर्यात ने 2021-2022 मार्च में 33.66 लाख टन से बढ़कर (सितंबर-मार्च) 2022-2023 में 42.12 लाख टन को पहुंच गया है। इस वित्त वर्ष 2023-24 (अप्रैल-जून) में भी नॉन बासमती सफ़ेद चावल का निर्यात लगभग 15.54 लाख टन हुआ, जिसमें पिछले साल की मुक़ाबले 35 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
सरकार का मानना है कि चावल की इस क़ीस्म के निर्यात में इतनी तेज़ी के पीछे दुनिया भर के भू-राजनीतिक परिदृश्य, चावल उत्पादक देशों में अल नीनो और बदलते मौसम का हो सकता है। हालांकि, बासमती चावल और उबले चावल के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, जिससे उनमें कुछ राहत है। अब रास्ता ढूँढना होगा कि चावल की इस मुश्किल से निकलने के लिए कौनसा तरीका सबसे बेहतर होगा और चावल की उपलब्धता और दामों में सुधार कैसे किया जा सकता है।