आधुनिक विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत ने एक नया महत्वपूर्ण कदम उठाया है। 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से चंद्रयान-3 की सफल लॉन्चिंग हुई थी, जिससे इसरो ने एक बार फिर से दुनिया को अपनी तकनीकी प्रगति का सबूत दिखाया है। इस अहम प्रोजेक्ट के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर अनुसंधान के नए संभावनाओं की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
चंद्रयान-3 मिशन का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करके नए गहराईयों तक पहुंचना है। इस मिशन के तहत तीन महत्वपूर्ण घटक हैं – पहला है प्रोप्लशन मॉड्यूल, दूसरा है लैंडर मॉड्यूल ‘विक्रम’, और तीसरा है रोवर ‘प्रज्ञान’। इन तीनों घटकों के साथ, चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर नए खोजों और अनुसंधान के मार्ग को खोलेगा।
17 अगस्त को प्रोप्लशन मॉड्यूल ने लैंडर मॉड्यूल ‘विक्रम’ को चंद्रमा की तरफ अग्रसर किया, और 23 अगस्त को ‘विक्रम’ लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। इस दौरान विक्रम लैंडर एक महत्वपूर्ण काम करेगा – खुद काम करना। इसका मतलब है कि इसरो के वैज्ञानिकों को विक्रम को किसी भी प्रकार की कमांड नहीं देनी पड़ेगी, वह स्वतंत्रता से अपने मिशन को पूरा करेगा। इस 15 मिनट के दौरान, जब विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर कदम रखेगा, 1440 दिनों के मेहनत का नतीजा प्रकट होगा।
चंद्रयान-3 का लैंडर ‘विक्रम’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जो कि अब तक किसी देश द्वारा नहीं किया गया है। यह मिशन चंद्रमा पर विभिन्न खोजों को संभावित बनाए रखने के साथ-साथ चंद्रमा की उप-सत्रिय क्षेत्रों के प्रति भी नए दृष्टिकोण प्रस्तुत करेगा।
चंद्रयान-3 मिशन के अंतर्गत चंद्रमा पर एक लूनर, अर्थात् चंद्रमा की सतह पर 14 दिन तक काम करने की क्षमता होगी। इस वक्त मिशन ‘प्रज्ञान’ चंद्रमा पर पानी की खोज, खनिजों की जांच, भूकंपों के अध्ययन, तापमान और मिट्टी की गहराईयों की अनुसंधान करेगा। यह मिशन न केवल भारतीय बल्कि विश्व विज्ञान में एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह हमें चंद्रमा की रहस्यमयी दुनिया को समझने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगा।