कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में कनाडा संसद में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है जिसने संसद और पूरे देश के लोगों के दिलों को छू लिया। उन्होंने नाज़ियों की तरफ़ से लड़ने वाले एक पूर्व सैनिक के सम्मान के लिए माफ़ी मांगी है।
ट्रूडो ने कहा, “ये एक ग़लती थी, जिससे देश और संसद दोनों शर्मिंदा हुए। सदन में मौजूद हम सभी लोगों को खेद है कि हमने खड़े होकर ताली बजाई और सम्मान किया. हालांकि हमें संदर्भ नहीं पता था.”
इस समर्थन और सम्मान का ऐलान करते हुए, ट्रूडो ने यह भी जताया कि नाज़ियों के निशाने पर रहे यहूदियों, पोल्स, रोमा, और एलजीबीटी कम्युनिटी के लोगों के लिए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुए ये अत्याचार और खौफ़नाक थे।
यह समझाने में उचित है कि ट्रूडो की माफ़ी और समर्थन के पीछे एक संवेदनशील दृष्टिकोण है, जो वो व्यक्त करना चाहते हैं कि इतिहास के इस अध्याय को हमें कभी भी भूलने का हक नहीं है। इस घटना से हमें यह सिखने को मिलता है कि इतिहास की ग़लतियों को स्वीकार करना और सुधार करना आवश्यक है, ताकि हम भविष्य में उन्हें दोहराने से बच सकें।
इस आदर्श कार्य के माध्यम से, कनाडा ने मानवता, समरासता, और समाजवाद के मूल मूल्यों का पालन किया है, और इसने हम सभी को यह सिखाया है कि समाज में न्याय और इंसानियत के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी क्या है।