भारत से एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद हसनैन ने अपने बेटे इसहाक़ अमीर के साथ पाकिस्तान की ओर बढ़ते कदम रखा। यह कदम भारत से पाकिस्तान की ओर जाने का था, जिसके पीछे कई कारण थे।
हसनैन और उनके बेटे का कहना है कि भारत में वे ‘धार्मिक विद्वेष और प्रताड़ना’ का सामना कर रहे थे, और वे वापस जाने की बजाय पाकिस्तान में ‘मरना या जेल में रहना पसंद करेंगे.’
यह एक कठिन और दिलों को छूने वाली कहानी है, जिसमें व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य, सामाजिक जाति और मानवाधिकार के मुद्दे उजागर होते हैं। इसके अलावा, भारत में मुस्लिमों के खिलाफ बढ़ती नफरत के साथ इस मामले का विश्लेषण भी किया जाएगा।
हसनैन और इसहाक़ अमीर, दोनों ही भारतीय नागरिक हैं, और अब पाकिस्तान के कराची क्षेत्र के इलाके अंचौली में रह रहे हैं। उन्हें ईधी होम से निकलने पर पाबंदी है और उनकी निगरानी के लिए दो पुलिस अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।
मोहम्मद हसनैन ने बताया कि वे पहले दिल्ली से अबू धाबी गए थे, जहां से उन्होंने अफगानिस्तान का वीजा लगवाया था। उनका आगमन काबुल में हुआ, और वहां से कंधार में रहने वाले कुछ लोगों ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके चमन में ले जाने में मदद की।
मोहम्मद हसनैन ने यह बताया, “चमन से हमने क्वेटा के लिए दस हजार रुपए में टैक्सी पकड़ी और उसी टैक्सी को पचास हजार रुपए देकर हम क्वेटा पहुंचे।” उनके अनुसार, “होटल में रहने की जगह न मिली तो हमने खुद पुलिस अधिकारियों से मिलकर उन्हें अपनी कहानी सुनाई और कहा कि हम सीमा पार करने वाले मुसलमान हैं और शरण चाहते हैं।” उनके मुताबिक फिर पुलिस ने उन्हें ईधी सेंटर पहुंचा दिया।
मोहम्मद हसनैन ने बताया कि वे पहले दिल्ली से अबू धाबी गए थे, जहां से उन्होंने अफगानिस्तान का वीजा लगवाया था। उनका आगमन काबुल में हुआ, और वहां से कंधार में रहने वाले कुछ लोगों ने उन्हें गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके चमन में ले जाने में मदद की।
मोहम्मद हसनैन ने बताया, “चमन से हमने क्वेटा के लिए दस हजार रुपए में टैक्सी पकड़ी और उसी टैक्सी को पचास हजार रुपए देकर हम क्वेटा पहुंचे।” उनके अनुसार, “होटल में रहने की जगह न मिली तो हमने खुद पुलिस अधिकारियों से मिलकर उन्हें अपनी कहानी सुनाई और कहा कि हम सीमा पार करने वाले मुसलमान हैं और शरण चाहते हैं।” उनके मुताबिक फिर पुलिस ने उन्हें ईधी सेंटर पहुंचा दिया।