नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के उरी में आतंकी हमले के पैदा हुई भारत-पाकिस्तान की तनातनी के बीच फ्रांस के साथ रफाल फाइटर प्लेन को लेकर पिछले चार साल से चली आ रही डील सरकार ने लोगों के हक की कमाई से दुगुनी से भी ज्यादा कीमत देकर फायनल कर दी. इस विशालकाय रक्षा सौदे को मीडिया द्वारा फायदे का सौदा बताया जा रहा है. भक्त टाइप पत्रकार इस खबर को इस तरह प्रचारित कर रहे हैं कि जैसे डील पर मुहर लगते ही पाकिस्तान नेस्तनाबूत हो जाएगा. जबकि इन विमानों के आते आते मोदी की शरीफ से चार बाद दोस्ताना मुलाकातें हो चुकी होंगी.
शक के पीछे सबूत-1
चार साल पहले जब फ्रांस के साथ फाइटर प्लेन की खरीद के लिए समझौता हुआ था तो तब इस प्लेन की कीमत करीब 715 करोड़ रूपये थी, लेकिन अब मोदी सरकार दोगुने से भी ज्यादा कीमत 1600 करोड़ रूपये प्रति प्लेन खरीद रही है. इस हिसाब से यह सौदा दोगुनी से ज्यादा कीमत पर करीब 60 हजार करोड़ रूपये में हुआ है.
शक के पीछे सबूत-2
जिन विमानों को चार साल पहले 715 करोड़ रूपये की दर से खरीदे जाने की बात हो रही थी, आज उसकी कीमत दोगुनी से ज्यादा क्यों और कैसे हो गई?
शक के पीछे सबूत-3
विमान की ख़रीद की प्रक्रिया यूपीए सरकार ने 2010 में शुरू की थी. 2012 से लेकर 2015 तक इसे लेकर बातचीत चलती रही. जब 126 विमानों की बात चल रही थी तब उस वक़्त ये सौदा हुआ था कि 18 विमान भारत ख़रीदेगा और 108 विमान भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स एसेम्बल करेगी और तो और भारत के विमान बनाने के लिए टैक्नोलॉजी भी मिलने वाली थी.
शक के पीछे सबूत-4
अप्रैल 2015 में मोदी सरकार ने पेरिस में घोषणा की कि हम 126 विमानों के सौदे को रद्द कर रहे हैं और इसके बदले 36 विमान सीधे फ्रांस से ख़रीद रहे हैं और एक भी रफ़ाल विमान बनाएंगे नहीं. बीबीसी के अनुसार भारत को दास्सो को 15 फ़ीसदी एडवांस रकम देनी होगी तब जाकर उन विमानों पर काम शुरू होगा.
शक के पीछे सबूत-5
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं कि 13 अप्रेल 2015 को रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि भारत 126 राफेल विमान खरीदेगा और इस पर करीब 90,000 करोड़ का खर्च आएगा, यानी तब एक विमान की कीमत 715 करोड़ रुपए बताई गई थी. दिलीप मंडल ने उस समय की रिपोर्ट का लिंक भी दिया है. आप इस तस्वीर पर क्लिक करके वो लिंक देख सकते हैं. देखें उस समय की रिपोर्ट –
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मंडल लिखते हैं कि डील होते ही राफेल का शेयर आसमान में उड़ने लगा तीन महीने के शेयर भाव का चार्ट देखें. कंपनी के निवेशक कंपनी से बेहद खुश हैं. देखए ये चार्ट
शक के पीछे सबूत- 6
उन्होंने राफेल डील के पीछे मुकेश अंबानी का हाथ होने की भी बात कही. बकौल मंडल , राफेल बनाने वाली कंपनी और मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज बिजनेस पार्टनर हैं.
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शक के पीछे सबूत- 8
मुकेश ही नहीं अनिल अंबानी की भी है इस कंपनी में हिस्सेदारी. मुकेश के साथ साथ अनिल अंबानी बी राफेल बेचने वाली कंपनी में हिस्सेदार हैं. देखिए ये रिपोर्ट
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ये सारी वजहें एक ही तरफ इशारा करती है. और वो इशारा इन बिंदुओं की तरफ है…
राफेल डील में मोदी सरकार ने करीब दुगुने दाम पर विमान खरीदे
मोदी सरकार ने भारत को मिलने वाली टैक्नोलॉजी पर भी समझौता किया. मेक इन इंडिया वाली शर्तों को हटा दिया जिससे विमान कंपनी की मौज हो गई. कंपनी ने बड़ा फायदा उठाया उससे शेयर बाजा़र में भी उसकी मौज हो गई इस सौदे में मुकेश और अनिल अंबानी को बड़ा फायदा हुआ. विमान बेचने वाली कंपनी में अंबानी भी हिस्सेदार हैं.
जब इतने सवाल हों तो सरकार का फर्ज है कि जनता के बीच सचाई लेकर आए. उसे इन सभी विंदुओं पर सफाई देना चाहिए. उसे बताना चाहिए कि उसने क्यों ऐसी डील की . सोशल मीडिया पर कई लोग ये भी सवाल उठा रहे हैं कि उड़ी के समय ये डील अफरातफरी में इसलिए साइन की गई ताकि शोर में घोटाले की बात दब जाए . ऐसे सवालों को भी सरकार को ही साफ करना होगा. इस रिपोर्ट में हमने तथ्यों और परिस्थिति जन्य स्थितियों के आधार पर सवाल उठाए हैं, हम इस मामले में किसी भी प्रकार की इन्वेस्टीगेशन करने का दावा नहीं करते. न ही रक्षा मंत्रालय के किसी सूत्र से ये खबर मिली है. ये हुनर हमारे दूसरे मीडिया मित्रों के पास है जो प्रधानमंत्री के वार रूम की अत्यंत गोपनीय खबर भी टीवी पर दिखा लेते हैं