क्या देश में काम करने वाले सभी अफसर सरकार के नहीं देश के नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी के नौकर होते हैं ? क्या बीजेपी की शान में गुस्ताखी करने पर किसी अफसर का तबादला किया जाना सही है ? ये सवाल काफी अहम है और जब से छत्तीसगढ के एक आईएएस अफसर का तबादला किया गया है तब से ये और अहम हो गया है.
बीजेपी के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय थे . उन्होंने आरएसएस के कहने पर एक राजनीतिक पार्टी बनाई जिसका नाम जनसंघ था. जनसंघ की न तो कोई बड़ी राजनीतिक उपलब्धियां थीं न कोई अलग से राष्ट्य योगदान. सिवा इसके कि कई बड़े नेताओं ने जनसंघ से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी नाम की पार्टी बनी जो आजकर सत्ता में है.
जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय को बीजेपी शहीद बताती है. वैसा ही महान शहीद जैसे सीमा पर बलिदान देने वाला कोई जवान होता है या देश के लिए जान देने वाला राजीव गांधी या इंदिरा गांधी जैसा कोई नेता. दीनदयाल उपाध्याय की शहादत की कहान छोटी सी है. एक कार्यक्रम से भाग लेकर लौट रहे थे. दो घंटे बाद किसी ने खबर दी कि एक आदमी बिहार के मुगलसराय स्टेशन के पास रेल से कटकर मर गया है. ये बात 11 फरवरी 1968 की है. संघ इसे शहादत मानती है और बीजेपी भी. आधा घंटे पहले ही दीन दयाल उपाध्याय मुगल सराय में एक सामान्य सा भाषण देकर निकले थे. बीजेपी कहती है कि मौत चूंकि संदेहास्पद है इसलिए वो शहीद हैं. ऐसा किसी और पार्टी वाले के बारे में कहा जाता तो बीजेपी उसे शहीदों का अपमान करार देती. कांग्रेस के लोगों का कहना है कि ट्रेन में लटक कर सफर करेंगे तो गिर ही जाएंगे इसमें शहादत कैसी.
जाहिर बात है कि दीनदयाल उपाध्याय जैसे एक पार्टी के संस्थापक संगठन मंत्री की हत्या हो तो लोग राजनीतिक रसाजिश की कल्पना कर सकते हैं लेकिन जनसंघ की हैसियत उस वक्त वैसी नहीं थी. न ही वो आम आदमी पार्टी जैसी तेज़ी से उभरती पार्टी थी जिससे लोग खौफ खाएं न ही अगले 10 सालों तक वो कांग्रेस को शिकन तक देने की हालत में रही.
बहरहाल छत्तीगढ पर वापस आते हैं वहां के एक आईएएस अफसर ने पूरा जीवन परिचय पढ़ने के बाद फेसबुक पर अपने मित्रों से पूछा कि आखिर दीनदयान उपाध्याय का देश के लिए योगदान क्या था. सहज जिज्ञासा थी सोचा होगा कि संघ का कोई मित्र मार्गदर्शन कर देगा. नतीजा इतना खतरनाक होगा इस अफसर ने सोचा भी नहीं था. अफसर को एक के बाद एक मुसीबतों का सामना करना पड़ा. बीजेपी की सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिव अनंत तायल का को तुरंत मुख्य कार्यपालक अधिकारी, जिला पंचायत कांकेर के पद से हटा दिया. इसके साथी ही उनके सिर पर जांच बिठा दी. बीजेपी सरकार की जांच का मतलब सब जानते हैं दोषी साबित करने की एक कवायद.
टिप्पणी के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अधिकारी पर कार्रवाई की मांग कर दी. हालांकि बाद में अधिकारी ने अपने पोस्ट हटा लिया और इस पर खेद जताया था.
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