कहीं देश भक्ति का सुपर ओवरडोज और चीन के बहिस्कार का अकारण कैंपेन देश के बिगड़ते आर्थिक हालात और बेरोजगारी से ध्यान हटाने के लिए तो नहीं चलाया गया. जिस तरह युद्ध स्तर सोशल मीडिया सेल के लोग काम कर रहे थे और चीन के खिलाफ माहौल बनाने में लगे थे और बिना पानी रोके ही पानी रोकने की बात कहकर पूरे देश को हिला दिया था, उसके पीछे के कारण अब समझ में आ लगे हैं. न तो आतंकवादी हमले के खिलाफ भारत जेसे बड़े देश को अति व्यग्र बनाने की ज़रूरत थी न चीन पर ओवर रिएक्ट करने की , लेकिन ताजा आँकड़े कह रहे हैं कि सरकार में बैठी पार्टी के लिए ध्यान बंटाने के ऐसे ज़रिए अपनाने के अलावा कोई रास्ता बचा ही नहीं था.
ताज़ा रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. सबसे पहले बेरोजगारी की बात करते हैं. बेरोजगारी भी अंधाधुंध बढ़ी है. देश में बेरोजगारों की संख्या भी बढ़ रही है. श्रम आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की बेरोजगारी दर 2015-16 में पांच फीसद पर पहुंच गई, जो पांच साल में सबसे ज्यादा है. महिलाओं के मामले में बेरोजगारी दर उल्लेखनीय रूप से 8.7 फीसद के उच्च स्तर पर, जबकि पुरुषों के संदर्भ में यह 4.3 फीसद रही. यह आंकड़ा केंद्र की भाजपा शासित सरकार के लिए खतरे की घंटी हो सकती थी, जिसने देश में समावेशी वृद्धि के लिए रोजगार सृजित करने को लेकर ‘मेक इन इंडिया’ जैसे कई कदम उठाए हैं. लेकिन नतीजे उल्टे आने का मतलब है कि मेक इन इंडिया फेल रहा. यानी सरकार के पास कोई रास्ता ही नहीं था कि ध्यान भटकाती .
औद्योगिक उत्पादन की बात करें तो लगातार दूसरे महीने उसमें गिरावट दर्ज की गई है. पिछले साल की तुलना में इस साल अगस्त में इसमें 0.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई. समाचार एजेंसी रॉयटर्स की खबर के अनुसार सोमवार को जारी हुए सरकारी डाटा में सामने आया कि खनन और निर्माण उत्पादन में कमी रही. पिछले साल की तुलना में अगस्त के महीने में खनन में 5.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुर्इ. वहीं निर्माण उत्पादन में 0.3 प्रतिशत की कमी रही. कमजोर निवेश को देखते हुए कैपिटल गुड्स निर्माण 22.2 प्रतिशत तक सिमट गया. हालांकि साल 2015 के अगस्त महीने की तुलना में इस साल कंज्यूमर गुड्स में 1.1 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली. पिछले साल से सरकार ने जीडीपी की गणना के मैथड में बदलाव किया है और इसके बाद से औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े निराशाजनक रह रहे हैं. नए मैथड में गुड्स और सर्विसेज में ग्रॉस वैल्यू एडिशन को आंका जाता है जबकि पहले वॉल्यूम बेस्ड फैक्टर के आधार पर गणना होती थी.
मतलब साफ है कि सरकार का प्रदर्शन औसत से भी बेहद कमज़ोर है जबकि मोदी की सरकार को सुपर हीरो सरकार के तौर पर लोगों के सामने पेश किया गया.