महाराष्ट्र के सतारा में हो रहे एक साहित्यिक सम्मेलन में दो दलित लेखकों ने जब शिवाजी की जाति पर टिप्पणी की तो पुरज़ोर विरोध होने की वजह से उन्हें सम्मेलन ही छोड़ना पड़ा.
दलित लेखक प्रज्ञा पवार ने कहा था, “शिवाजी मराठा यानी क्षत्रिय जाति से नहीं बल्कि निचली जाति से थे.”
मराठा समुदाय के गौरव का प्रतीक और महान योद्धा माने जाने वाले शिवाजी की जाति पर विवाद कई बार पैदा हुआ है और कई लेखकों और किताबों का विरोध हुआ है.
पर इस मुद्दे पर क्या है इतिहासकारों की राय, यही जानने के लिए बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य ने महाराष्ट्र के दो इतिहासकारों से बात की.
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय पिछले एक महीने से मूक रैलियां निकाल रहा है.
इतिहासकार और इस्लाम के जानकार प्रोफेसर अब्दुल क़ादिर मुकादम के मुताबिक-
“शिवाजी के दौर में मराठा प्रभुत्वशाली समुदाय था लेकिन ज़्यादातर लोग निज़ामशाही में काम करते थे. उनसे पहले मराठा समुदाय में किसी ने राजा बनने की कोशिश नहीं की थी. समुदाय को शूद्र माना जाता था.
शिवाजी ने औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ अपना स्वतंत्र राज्य बनाने की कोशिश की और सफ़ल रहे. वो मराठों में राजा का ओहदा पाने वाले पहले थे. इसीलिए उनके लिए ये ज़रूरी था कि हिंदू परंपरा के मुताबिक उनका राज्याभिषेक हो और लोगों से मान-सम्मान के अलावा उनकी राजशाही को धार्मिक मान्यता मिले.
धर्म के अनुसार राजा बनने का अधिकार सिर्फ़ क्षत्रियों को था. ऐसे में उन्होंने जाति प्रथा की इस व्यवस्था से निकलने की कोशिश की.
उन्होंने काशी के मान्य ब्राह्मण गागाभट्ट को बुलवाया जिन्होंने आकर दावा किया कि शिवाजी दरअसल राजस्थान के क्षत्रिय जाति के सिसोदिया परिवार के वंशज हैं.
इस बात को मान लिया गया और शिवाजी की बदौलत पूरे मराठा समुदाय को क्षत्रिय होने का दर्जा मिला.
कर्म, कौशल और ज्ञान के संदर्भ में शिवाजी को क्षत्रिय जाति का ही मानना चाहिए.”
शिवाजी पर विवादास्पद लेख लिखने वाले इतिहासकार बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे को महाराष्ट्र सम्मान दिए जाने का काफ़ी विरोध हुआ था.
1857 की लड़ाई और सावरकर के इतिहास पर लिखनेवाले प्रोफेसर शेषराव मोरे के मुताबिक-
“पहले वर्ण को व्यवसाय के तौर पर बांटा गया, पर बाद में धर्मशास्त्र में दो ही वर्ण माने गए. एक थे ब्राहमण और अन्य तीनों को एक श्रेणी में शूद्र माना गया.
इसके पीछे कुछ पुराणों में बताया गया एक मिथक था. इसके मुताबिक विष्णु के अवतार माने जाने वाले परशुराम और क्षत्रियों के बीच लड़ाई हो गई और उसमें सब क्षत्रिय मारे गए.
पीछे सिर्फ विधवाएं और बच्चे रह गए, जिन्हें प्रजा यानी शूद्र माना गया.
इस ग़लत मान्यता के चलते और जाति प्रथा को क़ायम रखने के लिए ब्राहमणों ने शिवाजी का राज्यभिषेक करने से मना कर दिया.
शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रीय ही है क्योंकि उनका घराना राजा का घराना था और उनकी पीढ़ियां लड़ाई के कौशल में माहिर थीं.
वो राजस्थान के राजपूत घराने से महाराष्ट्र आए थे और क्षत्रिय और शूद्र की ये बहस बिल्कुल बेमानी है.
वर्ण व्यवस्था से पहले शूद्र भी राजा थे और क्षत्रिय वेद लिखते थे. ये सारे अंतर तो ब्राहमणों के ही बनाए हुए हैं और इतिहास भी उन्होंने ही लिखा है.”
ctsy-BBC hindi