चाइनीज़ पटाखों पर बैन लग गया है और अपने देसी वाले लूटने पर उतारू हैं. सरकारी के नपुंसक रवैये के कारण कंपनियां 1 रुपये के पटाखे पर 20 रुपये का एमआरपी चिपका रही हैं और उसे 50 फीसदी डिस्काउंट पर यानी 10 गुना रेट में आराम से चिपकाया जा रहा है. आतिशबाज़ी इंडस्ट्री के बड़े दाम वैसे तो खुद भी इस खेल में शामिल है लेकिन वो इतना ज्यादा अंतर नहीं रखते. इसलिए छोटी कंपनियों के खेल से उनकी हालत भी खराब है. ज्यादातर बड़े ब्रैंड्स की शिकायत है कि सैकड़ों कंपनियां और छोटे मैन्युफैक्चरर थोक व्यापारियों से मिलकर मनमाना अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) प्रिंट कर रहे हैं और बाजार में 50 से 70 प्रतिशत तक डिस्काउंट देकर ग्राहकों को गुमराह कर रहे हैं। बड़ी कंपनियां चाहती हैं कि सरकार कॉस्ट और सेलिंग प्राइस के बजाय एमआरपी पर टैक्स लागू करे जिससे मुनाफाखोरी काबू होने के साथ ही चाइनीज पटाखों पर भी लगाम कसेगी। इस तरह का एमआरपी सिस्टम ब्रांडेड गारमेंट पर पहले से ही लागू है इसलिए मोटे मोटे डिस्काउंट वाली सेल मॉल्स से गायब हो गई हैं.
इस साल चाइनीज पटाखों पर दिल्ली सरकार की सख्ती बढ़ने से राजधानी के बाजारों में फिलहाल देसी ब्रैंड्स ही नजर आ रहे हैं जिनमें से 80 प्रतिशत तमिलनाडु के शिवाकाशी की कंपनियां हैं। पटाखों के संगठित बाजार में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाली श्री कालीश्वरी फायर वर्क्स (मुर्गा ब्रैंड) के एमडी ए पी सेलवराजन ने बताया, ‘किसी पटाखा पैक की लागत अगर 20 रुपये है तो छोटी यूनिटें एजेंट या ट्रेडर के कहने पर 350 से 400 रुपये तक एमआरपी प्रिंट करती हैं।
शुरू में ट्रेडर ग्राहकों को 70 प्रतिशत तक डिस्काउंट ऑफर करते हैं, जबकि हकीकत में उस रेट पर भी वे दो से तीन गुना और कई बार पांच गुना मुनाफा कमाते हैं।’ यह पूछे जाने पर कि बड़े ब्रैंड्स भी ऐसा क्यों नहीं करते, उन्होंने कहा कि कोई भी ब्रैंड इतने बड़े प्राइस बैंड में टिक नहीं सकता और वर्षों की ब्रैंड इमेज भी ध्वस्त हो जाएगी। पटाखा इंडस्ट्री की कई असोसिएशनों की नुमाइंदगी करने वाले सेलवराजन ने केंद्र सरकार से मांग की है कि अगर वह टैक्सेज की वसूली लागत मूल्य के बजाय एमआरपी पर करे तो कीमतों पर अपने आप नियंत्रण हो जाएगा। ज्यादातर राज्यों में पटाखों पर वैट सेल्स इनवॉयस पर ही लगता है।