भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जितनी विदेश यात्राएं की उनती विश्व के किसी नेता ने शायद ही कभी की हों . इतने कम अंतराल में इतनी विदेश यात्रा का जिक्र तो कही मिलता ही नहीं. इन यात्राओं पर मोदी ने खर्च भी खूब किया और अफ्रीका जैसे देशों को सहायता भी खूब दी. लेकिन इन यात्राओं से भारत को कुछ मिल सका है ऐसा दिखाई नहीं देता.
ये अलग बात है कि अडानी जैसे उद्योगपतियों के अफ्रीकी देशों से दाल इंपोर्ट करने के कुछ अवसर मिल गए. मोदी चीन गए , मिट्टी के पुतलों के साथ काले चश्मे में पोज दिए. बच्चों के साथ सेल्फी ली लेकिन चीन से मोदी को अबतक भोले जी का प्रसाद भी नहीं मिला है.उल्टे मोदी ही इन देशों के सामने फर्शी सलाम करने नज़र आए हैं.
मोदी ने चीन के प्रधानमंत्री से खूब बात की लेकिन ब्रह्मपुत्र का पानी रोकने के मसले पर एक शब्द नहीं बोल सके. ये वोही मुद्दा है जिस पर मोदी समर्थक पूरे देश में चीनी सामान का बहिस्कार करने की बातें करके देशभक्ति का माहौल बनाए हुए हैं. चीन ने मोदी को साफ कह दिया कि कोई धर्म या देश आतंकवादी नही होता. इसलिए वो मोदी की बातें नहीं मानते.
ये थी चीन की बात. पाकिस्तान बिना बुलाए मोदी के पहुंचने की बात तो हम नहीं करेंगे सब जानते हैं क्या नतीजा निकला. अब रूस और अमेरिका की सुनिए. पहले रूस की. पुतिन आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय अभियान छेड़कर पूरी दुनिया में हीरो बने हुए हैं.
अमेरिका के पिट्ठू बनने और भारतीय सैनिक ठिकानों का इस्तेमाल करने की इजाजत देने के बावजूद पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को खूब मस्का लगाया. ब्रिक्स सम्मेलन से पहले बोले कि एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों से बेहतर है लेकिन रूस ने साथ नहीं दिया. ब्रिक्स सम्मेलन में पाकिस्तान को आतंकवाद की वजह से अलग-थलग करने के मुद्दे पर रूस ने भारत का समर्थन नहीं किया यानी डिप्लोमेसी में यहां भी फेल.
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में छपी खबर के मुताबिक चीन पहले से ही जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का नाम गोवा डिक्लेरेशन में लाने का रास्ता बंद कर चुका था. लेकिन रूस ने भी पाकिस्तान के इन दोनों आतंकवादी संगठनों को लेकर भारत के प्रस्ताव पर चुप्पी साधे रखी. ये हाल तब है ब्रिक्स में शामिल देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा घोषित आतंकवादी संगठनों की सूची को स्वीकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
तमाम डिप्लोमेसी के बावजूद भारत ने अपना पुराना दोस्त खो दिया. वो पाकिस्तान के ज्यादा नज़दीक नज़र आया. उसने पाकिस्तान के साथ एंटी- टेरर एक्सरसाइज बताकर कई सैन्य अभ्यास किए हैं.
अल-नुसरा का नाम घोषणापत्र में शामिल
भारत जैश के नाम को लेकर कोशिशें करता रहा लेकिन रूस अल नुसरा का नाम आसानी से आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल होने से रह गया. यह इसलिए क्योंकि रूस सीरिया में लगातार अल-नुसरा को अपना निशाना बना रहा है. माना जाता है कि अल नुसरा को साउदी अरब और अंदरखाने अमेरिका का समर्थन प्राप्त है तब भी रूस कामयाब रहा.
अब बात अमेरिका की. उस अमेरिका की जिसकी यारी के चक्कर में मोदी ने पूरी दूनिया से भारत के रिश्तों का समीकरण ही बदल दिया. पाकिस्तान ने भी आतंकवाद की जननी करार दिए जाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर भारत का समर्थन नहीं किया. उसने कहा कि दोनों देशों को अपने मतभेदों का शांतिपूर्वक हल तलाशना चाहिए।
ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने सोमवार को कहा, ‘मैं मानता हूं कि मुझे इन बयानों पर कुछ भी बोलने को नहीं कहा गया है। मैं सामान्य रूप से यही कह सकता हूं कि हम भारत और पाकिस्तान को आपसी गहरे मतभेदों का शांतिपूर्वक हल ढूंढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।’ उन्होंने यह जवाब प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर पूछे गए सवाल पर दिया। मोदी ने गोवा में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान यह बयान दिया था। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उसे आतंकवाद की जननी करार दिया था।
अर्नेस्ट ने कहा, ‘हम कई मौकों पर पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद से गंभीर खतरे के मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं। पाकिस्तानी लोग इन आतंकी गतिविधियों का बहुत दफा शिकार हो चुके हैं। अमेरिका और पाकिस्तान का अहम संबंध है। यह क्षेत्र में हमारी सुरक्षा चिंताओं और आतंकी समूहों को खत्म करने से जुड़ा हुआ है। भारत और अमेरिका के बीच भी काफी अहम संबंध है। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच भी दोस्ताना संबंध हैं।’
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