किसी भी देश की कैबिनेट वो सर्वोच्च कार्यकारी संस्था है जो सरकार की नीतियों पर अंतिम फैसला लेती है. कैबिनेट इतनी शक्ति संपन्न और अहम है कि सभी मंत्रियों को भी उस में जगह नहीं मिलती. कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता खुद प्रधानमंत्री करते हैं और संसद में जाने से पहले कानून को अंतिम रूप देती है. कैबिनेट अध्यादेश जारी कर सकती है और सीधे शब्दों में कहें तो देश की किस्मत का फैसला करने वाली सबसे बड़ी संस्था है. दूसरे शब्दों में कहें तो केन्द्र सरकार वही है
लेकिन अफसोस की बात ये हैं कि सरकार का अविश्वास का स्तर इतना ऊंचा हो गया है कि भारत की कैबिनेट पर भी पीएम मोदी को भरोसा नहीं रहा यानी राजनाथ सिंहं सुषमा स्वराज अरुण जैटली वैकेया नायडू मनोहर पर्रिकर नितिन गडकरी और सुरेश प्रभु जैसे सरकार के अहम लोगों के प्रतिनिधित्व वाली कैबिनटे से भी सरकार डर रही है. नतीजा ये हुआ है कि सरकार ने कैबिनेट की मीटिंग में मोबाइल फोन और दूसरे इलैक्ट्रानिक उपकरणों को लेकर आने पर रोक लगा दी है. खतरा इस बात का है कि कैबिनेट के अंदर चर्चा में आने वाली बाते कही लीक न हो जाएं. हालांकि सरकार ने कहा है कि से इल्क्ट्रॉनिक उपकरणों की हैकिंग और जासूसी का खतरा है इसलिए ये फैसला लिया .
सरकार का कहना है कि खुफिया विभाग ने आशंका जताई थी कि विदेशी एजेंसियां फोन हैक करके बैठकों की रिकॉर्डिंग कर सकती हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अगर मंत्री के फोन से कैबिनेट की मीटिंग की जासूसी हो सकती है तो फिर मंत्री के दफ्तर में होने वाले कामकाज की जासूसी क्यों नहीं हो सकती. यानी साफ है कि अरुण जैटली अपने मंत्रालय में अफसरों से मंत्रणा करें तो लीकेज का खतरा नहीं है लेकिन अगर कैबिनेट की कार्यवाही लीक होती है तो खतरा है. जानकारों का कहना है कि कैबिनेट की बैठकों में मोबाइल लेकर आने के फैसले के पीछे ये तर्क हजम होने वाला नहीं है. ये लोग मानते हैं कि सरकार को ज़रूर मंत्रियों में से ही किसी के काली भेड़ होने का शक है यही वजह है कि कैबिनेट सचिवालय की तरफ से कैबिनेट की बैठकों में मंत्रियों के मोबाइल फोन लाने पर पाबंदी लगाने का आदेश जारी किया गया है. साथ ही मंत्रियों को मोबाइल के इस्तेमाल में सावधानी बरतने का भी सुझाव दिया गया है. इस बात पर भी कयास लगाया जा रहा है कि कौन वो मंत्री हो सकते हैं जो गोपनीयता की शपथ लेकर भी सबसे जिम्मेदारी की जगह पर जासूसी जैसे काम कर सकते हैं.
सरकार की ओर से इस तरह का फैसला पहली बार सामने आया है कि बैठकों में मंत्रियों को मोबाइल फोन लाने पर पाबंदी लगा दी गई है. इससे पहले मंत्रियों को माबाइल फोन लाने की अनुमति थी, हालांकि, उसे स्विच ऑफ करने या साइलेंट मोड पर रखना होता था.