केन्द्र सरकार के अनाड़ीपन का सबसे बुरा असर आला प्रशासनिक अफसरों पर पड़ रहा है. लगातार कम होती साख और खराब कामकाज से परेशान मोदी सरकार ने अब अफसरों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. अफसरों से कहा जा रहा है वो काम को जल्दी निपटाएं और तो और इसके लिए उन पर बिना प्रक्रियाओं को पूरा किए फैसले लेने का भी दबाव है.
अफसरों का कहना है कि प्रक्रिया पूरी किए बगैर काम करने से घपले होने की आशंका है और प्रक्रिया पूरी न करने के कारण उनकी नौकरी पर भी बन सकती है. अफसरों का कहना है कि उन पर दबाव बनाया जा रहा है और उनके सिर पर काम को तुगलकी अंदाज़ में निर्धारित किए गए समय में पूरा करने का दबाव है. एक अफसर ने बताया कि कोई भी सरकारी खरीद करने से पहले ज़रूरी है कि टैंडर निकाले जाएं. कम से कम 3 सप्लायरों के दाम में तुलना की जाए. टेंडर निकालने के बाद लोगों को टेंडर भरने के लिए समय भी देना होता है.
लेकिन सरकार अगर कहे कि ये टेंडर का चक्कर छोड़ो और आज ही समान खरीद लो अमुक व्यापारी से ले लो वो अच्छा है. अफसरों का कहना है कि ऐसा करना उनके लिए खतरनाक हो सकता है. नौकरशाही का काम है कि प्रक्रिया पूरी करे. अफसर कह रहे हैं कि कल सतर्कता आयोग या सीएजी या अन्य संस्था अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंशा करेगी तो वो क्या करेंगे.
शनिवार को करीब 80 आईएएस अधिकारियों ने इसी तरह के मसलों पर गहन मंथन किया. बैठक में अफसरों ने कहा कि उन्हें तुरंत निर्णय लेने का अधिकार और जिम्मा तो सरकार ने दे दिया है लेकिन उन्हें बीआई या सीवीसी से इसके लिए किसी प्रकार की सरकारी सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है. अधिकारियों ने चिंता जताई कि उनके त्वरित फैसले में अगर कोई खामी पाई जाती है तो इसके बाद केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) का डंडा उनपर चलना स्वभाविक है. इस बैठक में देशभर के भिन्न-भिन्न कैडर और बैच के आईएएस अधिकारी जुटे थे.
माना जा रहा है कि गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव जी के द्विवेदी और पूर्व कोयला सचिव एच सी गुप्ता के निलंबन के बाद अधिकारियों ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की है. गौरतलब है कि इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक के एनजीओ को एफसीआरए लाइसेंस का नवीनीकरण करने में कथित धांधली के लिए गृह मंत्रालय ने एक संयुक्त सचिव सहित चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया था. निलंबित किए गए अधिकारियों में संयुक्त सचिव जी.के. द्विवेदी, दो अवर सचिव और एक अनुभागीय अधिकारी शामिल थे.
सूत्रों ने बताया कि बैठक में इस बात पर गहन चर्चा हुई कि सीबीआई और सीवीसी द्वारा भविष्य में किए जानेवाले स्क्रूटनी और उससे उपजे हालातों से कैसे बचा जाय. इस बात पर भी अधिकारियों ने चर्चा की कि शासन के दैनिक कार्यों में बिना किसी दबाव, भेदभाव या पक्षपात के निष्पक्ष और साफ-सुथरे फैसले कैसे लिए जाएं. एक अधिकारी ने बताया कि सरकार का जोर तुरंत फैसला लेने पर है लेकिन इसके पीछे अफसरों के बीच अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना घर कर रही है कि उससे कैसे निपटा जाय.
इंडियन एक्सप्रेस ने आईएएस एसोसिएशन (सेन्ट्रल) के सचिव संजय भूसरेड्डी के हवाले से खबर छापी है कि , “इस बैठक में भ्रष्टाचार निरोधी कानून और उसके तहत कार्रवाई के प्रावधानों पर भी चर्चा हुई. मुद्दा ये है कि कैसे कठिन फैसले लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित की जाय. यह जरूरी है कि उन अधिकारियों को सुरक्षा मिले जिन्होंने पब्लिक इन्टरेस्ट में फैसले लिए हैं. इस संदर्भ में हमने भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 पर चर्चा की है. तर्क तो यह कहता है कि आज की तारीख में हर फैसले से किसी न किसी पार्टी को फायदा पहुंचता है, ऐसे में तो हम सारे लोग एक दिन जेल में होंगे.”
दरअसल, भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 के मुताबिक अगर किसी फैसले से किसी खास व्यक्ति को फायदा पहुंचता है तो फैसला लेनेवाला अधिकारी इस कानून के तहत दोषी माना जाएगा. अधिकारियों ने इसी चिंता से प्रधानमंत्री को भी वाकिफ कराया था, तब पीएम मोदी ने इसमें बदलाव के लिए विधि आयोग के सुझावों पर गौर करने का आश्वासन दिया था लेकिन जाकिर नाईक प्रकरण में गृह मंत्रालय के अधिकारियों के निलंबन ने इनकी चैन उड़ा रखी है.
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