अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत सरकार के 1000 और 500 रुपये के पुराने नोटों को बंद करने के फैसले का समर्थन तो किया है लेकिन इस बात पर चिंता जताई है कि भारत नए नोटों को लाने के दौरान अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर कैसे बनाए रख पाएगा. आईएमएफ के प्रवक्ता गैरी रीस ने रिपोर्टरों से बात करते हुए कहा कि वह भारत के भ्रष्टाचार से लड़ने और अर्थव्यवस्था में गैरकानूनी तरीकों से आने वाले पैसे को रोकने के लिए उठाए गए कदम का समर्थन करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि भारत में ज्यादातर कामों के लिए लोग बड़े पैमाने पर कैश के जरिए ही लेन-देन होता है और ऐसी स्थिति में सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि वह करेंसी नोटों को बदलने का काम ऐसे मैनेज करे जिससे लोगों को कम-से-कम परेशानियों का सामना करना पड़े.
आईएफएम इसलिए चिंतित है क्योंकि नोटों की कमी होने से देश में सामान की खपत पर बुरा असर पड़ रहा है. लोग सिर्फ ज़रूरी खर्च कर रहे हैं और ज्यादा खर्च वाले काम को भविष्य के लिए टाल रहे हैं. लेकिन अगर लगातार किल्लत रहती है तो उद्योग दो से तीन महीने से ज्यादा इसे संभाल नहीं पाएंगे और दूसरा संकट खड़ा होना शुरू हो जाएगा. ये संकट होगा रोजगार और दूसरी चीज़ों पर अर्थ व्यवस्था की मंदी से पड़ने वाला संकट.
अर्थशास्त्रियों को इससे भी बड़ी चिंता बाज़ार में कैश में कमी होने से इसलिए भी है क्योंकि लक्जरी सामान और महंगी कमोडिटीज की खरीदारी करने वाला तबका ज्यादातर कैश से ही खरीदारी करता था और ये कैश अकाउंटेड कभी नहीं होता था. आने वाले कम से कम एक साल तक इस तबके की खरीदारी पर भी ब्रेक लग जाएगा.