मोदी सरकार चाहती है कि लोग नोटों का इस्तेमाल बंद कर दें और जो भी लेन देन करें वो क्रेडिट डेबिट कार्ड और डेविट कार्ड से करें या पेटीएम जैसे माध्यमों से. सरकार ने इसके लिए जो तरीका निकाला है वो बेहद अजीब और बचकाना लगता है. सरकार लोगों से करंसी नोट छीन रही है और मानकर चल रही है कि जब करंसी नोट नहीं होंगे तो लोग झख मारकर इलेक्ट्रॉनिक तरीकों का इस्तेमाल करेंगे.
जो हालात हैं उनमें नहीं लगता कि मोदी का ये सपना अगल दस साल तक पूरा होगा. उल्टे समाज में अफरातफरी ही फैलेगी.
आईए नज़र डालते हैं कुछ आंकड़ों पर.
भारत में ‘2.6 करोड़ लोगों के पास ही क्रेडिट कार्ड हैं. जबकि रिटेल शॉप और आउटलेट्स पर सिर्फ़ 14 लाख कार्ड रीडर हैं। 150 करोड़ की आबादी के लिए कार्डरीडर बनाने और उनको भुगतान की जगह तक पहुंचाने में भी 5 से 7 साल लगेंगे.
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की मार्च में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि 88 प्रतिशत लोग डेबिट कार्ड का इस्तेमाल एटीएम से पैसे निकालने में करते हैं. मतलब एटीएम भी कैश निकालने में काम आ रहा है न कि कैशलेस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है.
मुल्क की 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग कैश इकोनॉमी पर निर्भर हैं.
भारत में अब भी 90 फ़ीसदी लोग कैश का इस्तेमाल करते हैं जबकि महज़ 10 फ़ीसद ही डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ क़दम मिलाकर चल पा रहे हैं. इतने लोगों को तैयार करना बच्चों का खेल नहीं है. इस काम के लिए भी दस से ज्यादा साल चाहिए.
देश में क्रेडिटकार्ड और दूसरे फ्रॉड पर लगाम लगाने में सरकार का रिकॉर्ड बेहद खराब है. ऐसे मामलों में सिर्फ 1 फीसदी केसेज में ही एक्शन होता है.
क्रेडिट कार्ड फ्रॉड जैसे मामलों में सरकार और पुलिस का रवैया बेहद ढीला है . पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती.
जो नये लोग क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल शुरू करेंगे उन्हें ठगी से बचाने के लिए सरकार के पास कोई प्लान भी दिखाई नहीं देता.
देश में डिजीटल सुरक्षा का भगवान ही मालिक है. हाल में 30 लाख क्रेडिट कार्ड हैक हुए और सरकार को इसकी भनक महीनों तक नहीं पड़ी. अगर भविष्य में ऐसा कोई अटैक होता है तो भारत की अर्थ व्यवस्था का क्या होगा?
ट्रक ड्राइवर, मज़दूर, किसान, मछुआरों जैसे तबकों को कैशलेस तरीके के लिए कंडीशन करने में 10 साल लगेगा