ये एक कड़वी सच्चाई है. मोदी सरकार की जानलेवा सच्चाई. सरकार ने अपनी छवि चमकाने और पीआर करने के मुकाबले अगर रत्तीभर भी कामकाज पर ध्यान दिया होता तो पुखराय हादसे में डेढ़ सौ लोगों की जान नहीं जाती. रेलवे के सूत्रों के मुताबिक रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने सेफ्टी पर बनाई गई अनिल काकोदकर समिति की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. इसी का नतीजा ये हादसा है. समिति ने साफ कहा था पुरानी पटरियों, पुरानी तकनीक के डिब्बे और सेफ्टी सिक्योरिटी स्टाफ की संख्या के कारण बार बार दुर्घटनाओं के आसार हैं लेकिन सरकार का ध्यान फेसबुक के ज़रिए वाहवाही लूटने पर रहाइंदौर पटना एक्सप्रेस हादसे में यह कहा जा रहा है की ट्रेन पटरी से उतर गई लेकिन इस गाड़ी के डिब्बों पर नजर डालें तो साफ पता चल जाता है कि ये मामला दुर्घटना का नही बल्कि हत्यारी लापरवाही का है. इस ट्रेन में आउटडेटेड तकनीक के आईसीएफ डिब्बे लगे हुए हैं. लोगों के भारी जान माल के नुकसान के लिए यही डिब्बे जिम्मेदार हैं. सेफ्टी मामलों पर बनी अनिल काकोडकर समिति ने 2012 में इन डिब्बों को पूरी तरीके से भारतीय रेलवे से बाहर किए जाने की सिफारिश की थी. बुलेट ट्रेन सोशल मीडिया पर ज्यादा बिकती है इसलिए सरकार ने लोगों को मर जाने दिया.
आईसीएफ कोच जिस तकनीक पर बने हुए हैं वो बीते जमाने की चीज है. रेलवे को सेफ्टी और सिक्योरिटी के मामले में सुझाव देने के लिए बनी अनिल काकोडकर समिति की रिपोर्ट में आईसीएफ कोच को भारतीय रेलवे से पूरी तरह से हटाने की सिफारिश की गई थी. इस सिफारिश को हुए 4 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी रेलवे में ज्यादातर डिब्बे आईसीएफ तकनीक के हैं. इस तरह के डिब्बों में डिब्बा सिर्फ रेल रैक पर रख दिया गया होता है . वो पूरी तरह जुड़ा नहीं होता. ऐसे में जब ऐसे डिब्बों से बनी हुई ट्रेन पटरी से उतरती है तो यह डिब्बे रैक से अलग हो जाते हैं. यानी झटका लगते ही डिब्बे रैक से अलग हो जाते हैं. इन डिब्बों जब यह डिब्बे पटरी से उतरते हैं तो एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते है. ऐसी स्थिति में यात्रियों के मरने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है.
ये थीं काकोदकर समिति की सिफारिशें
- फरवरी 2012 में रेल मंत्रालय को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में डॉक्टर अनिल काकोडकर ने तमाम तरह के सुझाव दिए. इन सुझावों पर नजर डाले तो समिति के मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे
- देशभर में रेलवे के सभी पुरानी तकनीक के डिब्बों को बदल कर एलएचबी टाइप के सुरक्षित डिब्बों में तब्दील किए जाने की सिफारिश. ऐसा किए जाने में तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपए का खर्चा आने का अनुमान लगाया गया था.
- रेलवे के लिए अलग से एक संस्था बनाकर एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम लगाने के लिए 20,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किए जाने का सुझाव दिया गया. यह सिग्नलिंग सिस्टम रेलवे के ट्रंक रूट के 19000 किलोमीटर पर लगाया जाना था.
- 2017 तक सभी मानवरहित और मानव सहित लेवल क्रॉसिंग को खत्म किया जाए. इसमें तकरीबन 50000 करोड रुपए का खर्चा आने का अनुमान रखा गया.
- सेफ्टी से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर के मेंटेनेंस के लिए 20,000 करोड़ रुपए खर्च किए जाने का सुझाव दिया गया
- काकोडकर समिति के सुझावों के लागू किए जाने में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्चा आने का अनुमान लगाया गया था इस भारी-भरकम धनराशि को इकट्ठा करने के लिए केंद्र सरकार से मदद और रेल यात्रियों पर सेफ्टी सेस लगाए जाने का सुझाव भी दिया गया था.