नई दिल्ली: नोटबंदी पर प्रधानमंत्री मोदी ने बिना बेहोश किए ऑपरेशन कर दिया है. ये बयान किसी और का नहीं उस शख्स का है जिसने पीएम मोदी को नोटबंदी का आइडिया दिया था. इस शख्स का नाम है अनिल बोकिल. अनिल ‘अर्थक्रांति’ नाम के संगठन के संस्थापक हैं. बोकिल ने ही प्रधानमंत्री मोदी को बड़े नोटों के चलन को बंद करने का सुझाव दिया था. पुणे के रहने वाले बोकिल ने कहा कि वह जुलाई महीने में प्रधानमंत्री मोदी के साथ मीटिंग की थी और नोटबंदी का सुझाव दिया था. अब जब देशवासी बैंकों और एटीएमों के सामने भारी भीड़ जमा हैं, तो बोकिल इसका दोष सरकार पर मढ़ रहे हैं.
मुंबई मिरर की खबर के मुताबिक, बोकिल का आरोप हैं सरकार ने उनका सुझाव तो माना लेकिन बीच में अपना दिमाग लगा दिया इसी से सारी गड़बड़ हुई. सरकार ने आधी बातें मानीं और आधी दरकिनार कर दीं. बोकिल ने कहा कि वे वो फिर से पीएम मोदी से मिलने दिल्ली जा रहे हैं. हालांकि, पीएमओ ने इसके लिए कोई वक्त तय नहीं किया हैं. उनका दावा है कि उन्होंने सरकार को कुल पांच प्वाइंट बताए थे लेकिन सरकार ने उनमें से सिर्फ दो को ही लागू किया. यह अचानक उठाया गया कदम था, ना कि बहुत सोचा-समझा. इस कदम का ना ही स्वागत किया जा सकता है और ना ही इसे खारिज कर सकते हैं. हम इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं. हमने सरकार को जो रोडमैप दिए थे, उससे आम लोगों को कोई परेशानी नहीं होती.
ये था बोकिल का प्लान –
1 . केंद्र या राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय निकायों द्वारा वसूले जाने वाले प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, सभी करों का पूर्ण खात्मा.
- ये सभी कर बैंक ट्रांजैक्शन टैक्स (बीटीटी) में बदले जाने थे. जिसके अंतर्गत बैंक के अंदर सभी प्रकार के लेनदेन पर करीब दो फीसदी लेवी लगती. यह प्रक्रिया सोर्स पर सिंगल पॉइंट टैक्स लगाने की होती.
- इससे जो पैसे मिलते उसे सरकार के खाते में विभिन्न स्तर (केंद्र, राज्य, स्थानीय निकाय आदि को 0.7%, 0.6%, 0.35% के हिसाब से) पर बांट दिया जाता. इसमें संबंधित बैंक को भी 0.35% हिस्सा मिलता. हालांकि, बीटीटी रेट तय करने का हक वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास होता.
- कैश ट्रांजैक्शन (निकासियों) पर कोई टैक्स नहीं लिया जाए.
- सभी तरह की ऊंचे मूल्य की करंसी (50 रुपये से ज्यादा की मुद्रा) वापस लिए जाएं. 5. सरकार निकासी की सीमा 2,000 रुपये तक किए जाने के लिए कानूनी प्रावधान बनाए. बोकिल का दावा है कि अगर ये सभी सुझाव एक साथ मान लिये गये होते, तो इससे आम आदमी को तो फायदा होता ही, पूरी व्यवस्था में भी बड़ा बदलाव आता. हालांकि, वह अब भी निराश नहीं हैं. वह कहते हैं, ‘सब कुछ खत्म हो गया, हम ऐसा नहीं मान रहे. हम सब देख रहे हैं लेकिन, सरकार ने बेहोशी की दवा दिये बिना ऑपरेशन कर दिया. इसलिए मरीजों को जान गंवानी पड़ी. हम इस प्रस्ताव पर 16 सालों से काम कर रहे हैं जब अर्थक्रांति साल 2000 में स्थापित हुई.