सोशल मीडिया पर नोटबंदी की आलोचना करने पर आप जेल जा सकते हैं. जीहां ऐसी आलोचना करने पर रोक लगा दी गई है. इसे आप इमरजेंसी कहें या कुछ और लेकिन ये सच है. मध्य प्रदेश के इंदौर में 14 नवंबर को एक आदेश जारी कर कलैक्टर ने नोटबंदी के फैसले पर की आलोचना करने पर प्रतिबंध लगाया था. सोशल मीडिया और मोबाइल मेसेंजर्स पर 500 और 1000 रुपए के नोट बंद होने पर आपत्तिजनक व भड़काऊ पोस्ट्स बढ़ती देख कलैक्टर पी नरहरि ने यह फैसला किया . उन्होंने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 144 (2) का हवाला दिया जिसके तहत प्रशासन को यह अधिकार मिलता है कि वह निश्चित समय के लिए किसी कार्य की इजाजत न दे. कहना है कि उन्हें लगा कि फेसबुक और व्हाट्सएप पर चल रहे मैसेज कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं. आदेश में कहा गया है, ”ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया पर पुरानी करंसी के एक्सचेंज की कानूनी प्रक्रिया से जुड़ी आपत्तिजनक और भड़काऊ पोस्ट्स व इमेजेस पर प्रतिबंध है. ऐसी पोस्ट्स पर कमेंट करने पर भी बैन है.” इस बैन के विरोध में मुक्त और खुले इंटरनेट की मांग करने वाले वालंटियर्स का एक समूह, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने इंदौर कलैक्टर को कानूनी नोटिस भेजा है.
बैन का विरोध करते हुए फाउंडेशन ने कहा, ”जिलाधिकारी का आदेश क्रिमिनल प्रोसीजर काेड के परे है और हम इसके भारतीयों के मूल अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं. हमने यह भी कहा कि अफवाहबाजी से निपटने के लिए सीआरपीसी का इस्तेमाल सही नहीं है और हम इसकी कानूनी वैधता के बारे में संतुष्ट नहीं हैं. अफवाहें लोगों को परेशान कर सकती हैं, मगर वे गैरकानूनी नहीं हैं.”
सोशल मीडिया पर भी यूजर्स ने इंदौर कलैक्टर के इस फैसले पर हैरानी जताई है. कई लोगों ने लिखा है कि इस तरह की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी. लोकतंत्र में बात रखने की आजादी है, अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई हाेनी चाहिए मगर नोटबंदी के विरोध को बैन करना ठीक नहीं है.
फैसले के आखिर में लिखा गया है, ”चूंकि यह आदेश जन-सामान्य के जानमाल की सुरक्षा और भविष्य में लोकशांति भंग होने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है तथा इतना समय उपलब्ध नहीं है कि जन सामान्य को इसकी सूचना पहुंचाई जाए. इसलिए इस आदेश में सीआरपीसी के तहत एकपक्षीय पारित किया जाता है.”