भारत के लोग अब ये कभी पता नहीं कर पाएंगे कि सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने उदयोग पित गौतम अडानी को कितना लोन दिया है. रमेश रणछोड़दास जोशी की याचिका पर आयोग ने यह आदेश दिया. जोशी यह जानना चाहते थे कि गौतम अडाणी समूह को किस आधार पर बड़ी मात्रा में कर्ज दिए गए. उन्होंने इस बारे में साक्ष्य भी मांगे थे कि क्या कर्ज ऑस्ट्रेलिया में कोयला खानों से संबंधित था. भारत केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कहा है कि उद्योगपति गौतम अडाणी द्वारा प्रवर्तित कंपनियों को दिए गए कर्ज से जुड़े रिकॉर्ड का खुलासा नहीं किया जा सकता है क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक ने संबंधित सूचनाओं को अमानत के तौर पर रखा है और इसमें वाणिज्यिक भरोसा जुड़ा है.
सूचना आयुक्त मंजुला पराशर ने आदेश में कहा, ‘सीपीआईओ अपीलकर्ता को सूचित करता है कि मांगी गयी सूचना वाणिज्यिक सूचना है और तीसरे पक्ष के भरोसे के आधार पर इसे रखा हुआ है. इसीलिए इसे उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है और आरटीआई कानून की धारा आठ (1) (डी) (वाणिज्यिक विश्वास) और (ई) (अमानत के तौर पर पड़ी चीज संबंधी प्रावधान) के तहत सूचना देने से इनकार किया जाता है.’
भारतीय स्टेट बैंक के केंद्रीय जन-सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) ने दावा किया कि जोशी ने अपने आरटीआई आवेदन में यह जिक्र नहीं किया कि यह मामला बड़े जन हित का है. आरटीआई कानून के तहत वैसी सूचना जिसे खुलासे से छूट प्राप्त है, उसका खुलासा किया जा सकता है बशर्ते उसमें कोई बड़े पैमाने पर जनहित जुड़ा हो.