नई दिल्ली : भारत को जल्द ही बड़ा आर्थिक धक्का लग सकता है. टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों के ऊपर बड़ा संकट मंडरा रहा है. अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों का कारोबार 150 अरब अमेरिकी डॉलर यानी करीब 10 लाख 28 हजार करोड़ रुपये का है. और इन कंपनियों पर अमेरिका के नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हो सकता है सख्ती की तलवार चला दें. अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल जनवरी में व्हाइट हाउस में कामकाज संभालेंगे. उनकी प्राथमिकताओं में एच1-बी वीजा को लेकर कड़ा रुख अपनाना शामिल होगा. ट्रंप ने वीजा के मामले में संरक्षणवादी नीति अपना सकते हैं. इस आशंका के मद्देनजर भारतीय कंपनियों ने स्थानीय अमेरिकियों की भर्ती भी शुरू कर दी है. खबर है कि दिग्गज भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में अपना अधिग्रहण और कॉलेजों से नए कर्मचारियों की भर्ती में इजाफा करेंगी और ये उन्हें महंगा पड़ेगा जिससे उनके ग्राहक कम हो सकते है. इसके अलावा इन कंपनियों में काम करने वाले भारतीय नौजवानों की नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं. अभी करीब 2 लाख कर्मचारी इन कंपनियों में काम कर रहे हैं.
अब तक अपेक्षाकृत कम वेतन के कारण ये कंपनियां भारतीय कम्प्यूटर इंजिनियरों को नौकरी देना पसंद करती थीं. 2005 से 2014 के दौरान इन तीन कंपनियों में एच1-बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों का आंकड़ा 86,000 से अधिक था. इनमें 65 हजार के करीब अस्थायी नौकरीपेशा लोग हैं जबकि 20-21 हजार अमेरिका के विश्वविद्यालयों में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एडवांस डिग्रियां लेने जाते हैं. इस तरह अमेरिका हर साल इतने लोगों को एच1-बी वीजा देता है. वीजा दिए जाने का यह काम लॉटरी सिस्टम पर आधारित होता है.
ट्रंप के कदम का यह होगा असर
ट्रंप के नए कदम पर अमेरिका में अब भारत से जाने वाले इंजिनियरों पर काफी हद कमी आ सकती है. अमेरिका का सिलिकॉन वैली स्थित बिजनेस भारत के सस्ते आईटी और सॉफ्टवेयर सल्यूशंस पर निर्भर रहा है.
डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन की ओर से वीजा को लेकर कड़ी नीति अपनाने पर भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में कम डेवेलपर्स और इंजिनियरों को ले जाएंगी, बल्कि वहीं के कॉलेजों से कैंपस प्लेसमेंट पर जोर दे सकती हैं.
ट्रंप ने हाल में एक वीडियो एड्रेस में व्हाइट हाउस में बतौर राष्ट्रपति अपने पहले 100 दिनों के कामकाज का ब्यौरा रखा था. ट्रंप ने कहा था कि वो वीजा कार्यक्रमों के दुरुपयोग की जांच के लिए लेबर डिपार्टमेंट को निर्देश देंगे.
पिछले साल ही बढ़ाई फीस
अमेरिकी संसद ने पिछले दिसंबर में एच1-बी और एल1 वीजा के लिए दोगुनी फीस करने को मंजूरी दी थी. इसके बाद एच1-बी वीजा के लिए अब 4000 डॉलर यानी 2.5 लाख रुपए और एल1 वीजा के लिए 4500 डॉलर यानी 2.8 लाख रुपए अधिक देने पड़ेंगे. यह बढ़ोतरी 10 साल के लिए की गई थी. इस फैसले का भी सीधा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ा है.
पहले एच1बी और एल1 वीजा के लिए फीस 190 डॉलर यानी 12 हजार रुपए थी. इसके अलावा अमेरिकी सरकार एच1बी के लिए 1.2 लाख रुपए और एल1 वीजा के लिए 1.5 लाख रुपए अतिरिक्त फीस भी वसूलती रही है.
भारतीय आईटी कंपनियों के संगठन NASSCOM के मुताबिक, भारतीय आईटी कंपनियां हर साल अमेरिकी सरकार को 505.36 करोड़ रुपए वीजा फीस के लिए भुगतान करती रही हैं. अब नए कानून के पास हो जाने के बाद उनका खर्च दोगुना होकर 1010 करोड़ रुपए तक हो गया है.