नई दिल्ली: नोटबंदी से अगर कोई सबसे ज्यादा खुश है तो वो है अमेरिका और वर्ल्ड बैंक. दोनों ही हमेशा से पूंजीवाद के जबरदस्त हामी रहे हैं वो पूरी दुनियां में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के पक्ष में कोशिश करते रहे हैं. अमेरिका चाहता है कि पूजी का पूरा केन्द्रीय करण कॉर्पोरेट्स के पास हो. वो नये नये काम धंधे चालू करें जिनसे रोजगार पैदा हो और रोजगार से मिला धन काम धंधों को फिर से बढ़ाए. पूंजीवादी विचारधारा के समर्थक मानते हैं कि इससे समृद्धि आती है. भारत मे लोग धन को जोड़कर भविष्य के लिए सहेजना चाहते हैं. इससे अमेरिका की तरह धनी लोगों को पैसा नहीं मिल पाता. लोगों के पैसे बाहर निकालने की कोशिश मनमोहन सिंह के वित्तमंत्री रहने के समय से ही होती रही है. लेकिन मोदी ने अमेरिका के एजेंडे को सबसे मजबूती से आगे बढ़ाया. मनमोहन सिंह तो किसानों पर भी टैक्स लगाना चाहते थे . उन्होंने खाद की सब्सिडी खत्म की ताकि उद्योंगों पर कर का बोझ कुछ कम हो सके.
जानकार मानते हैं कि रिसेशन के बाद अमेरिका विश्वभर में सक्रिय हुआ क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था में धन के प्रवाह को बढ़ाना ज़रूरी था और ये तभी संभव था कि दुनिया भर के लोग अपना धन बाहर निकालें. तभी से दुनियाभर में अमेरिका अपनी विचारधारा के समर्थक लोगों को अलग अलग देशों में सत्ता में लाने के लिए उनका सहयोग करता रहा है. भारत में भी एक तबके का मानना है कि पिछले लंबे समय से यहां अमेरिका की पिट्ठू सरकारें ही आती रही हैं. ये तबका मानता है कि मोदी की सरकार इन सब में सबसे उग्र तरीके से काम करती है.
अब भारत में नोटबंदी को लेकर अमेरिका सबसे उत्साह में है. नोटबंदी के कारण जनता का सारा धन कॉर्पोरेट्स की जेब में जाना है. जाहिर बात है कॉर्पोरेट्स टैक्नॉलोजी और सॉफ्टवेयर बगैरह आयात करेगा इससे कुछ धन अमेरिका भी पहुंचेगा. सरकार भी दबादब टैक्स वसूलेगी उससे हथियार खरीदेगी उससे भी अमेरिका का भला होगा.
उत्साहित अमेरिका के विदेश विभाग के उप प्रवक्ता मार्क टोनर ने गुरुवार को नोटबंदी की जबरदस्त तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि गैरकानूनी या अवैध लेनदेन पर काबू पाने का यह एक महत्वपूर्ण और आवश्यक कदम है. मैं समझता हूं कि भारत में काम करने और रहने वाले अमेरिकी नागरिकों के पास इन रुपयों को बदलने या नए नोट पाने के बारे में अब पूरी सूचना होगी.
सामंजस्य होने के दौरान भारतीयों के सामने अभी थोड़ी सी असुविधाजनक स्थिति है. इसके बावजूद मैं समझता हूं कि यह भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए आवश्यक है.’
उन्होंने कहा कि 500 और 1000 रुपये के नोटों को अनियमित कर भ्रष्टाचार और कर चोरी से होने वाले मुद्रा के अवैध प्रवाह को निशाना बनाया गया है. उन्होंने कहा, ‘अमेरिकी नागरिकों पर पड़ने वाले प्रभाव का सवाल पहले दिन से उठ रहा है. इस बारे में अमेरिकी दूतावास के माध्यम से बयान जारी किया जा चुका है.’