- क्या अमेरिका रूस ने अमेरिका से अपना बदला ले लिया है?
- क्या डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका का वही करेंगे जो गोर्वाचेव ने रूस का किया था?
- क्या ट्रंप को जिताकर पुतिन ने अमेरिका के बुरे दिनों की स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू कर दिया है?
- क्या चीन और रूस मिलकर अमेरिका की ताकत को अतीत का हिस्सा बनाने जा रहे हैं?
पढ़ने में ये सवाल अनोखे ज़रूर लगते हैं लेकिन हाल के घटनाक्रम के बाद रूस और अमेरिका के घटनाक्रम और उनके एक दूसरे के प्रति काम करने के अंदाज़ पर नज़र रखने वाले लोग यही माने है.
इन लोगों का मानना है कि सोवियत संघ के टूटने के पीछे वहां के अंदरूनी हालात नहीं थे बल्कि गोर्वाचेव की जानबूझकर बनाई गईं पेरेस्त्रोइका जैसी नीतियों का हाथ था.
जानकारों का खास तौर पर लेफ्ट समर्थक इतिहासकारों का मानना है कि इन्हीं नीतियों के चलते रूस की हालत खराब हुई और रूस के कई टुकड़े हुए. रूस में अफरातफरी फैलाने के लिए गोर्वाचेव ने नोटबंदी जैसे कदम भी जानबूझकर उठाए थे. इन जानकारों का कहना है कि गोर्वाचेव जिस दिशा में सोवियत संघ को ले जाने काम कर रहे थे वो उसे विघटन के अलावा कोई दूसरा नतीजा दे ही नहीं सकती थी. इन लोगों का मानना है कि सोवियत संघ में गोर्वाचेव को बाकायदा अमेरिका और सीआईए ने साजिश के तहत प्लांट किया था और जिसका नतीजा रूस के एक पूंजीवादी देश के रूप में देखने को मिला. ये जानकार भारत में मनमोहन सिंह का उभार और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पीछे भी अमेरिकी पूंजीवादी शक्तियों का ही हाथ देखते हैं.
अमेरिका के हाल के घटनाक्रम को देखें तो यहां भी वही गोर्वाचेव और सोवियत संघ वाली कहानी दोहरायी जा रही है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने एक रिपोर्ट में कहा है कि रूस ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में मदद करने में भी अहम भूमिका निभाई. इतना ही नहीं लोगों का चुनाव प्रक्रिया से भरोसा भी इसी वजह से उठा.
वॉशिंगटन पोस्ट की शुक्रवार की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि खुफिया एजेंसियों को रूसी सरकार से जुड़े ऐसे लोगों का पता चला है, जिन्होंने हिलेरी क्लिंटन के प्रचार अभियान प्रमुख समेत डेमोकेट्रिक नेशनल कमिटी और अन्य के हजारों ईमेल हैक करके विकिलीक्स को दिए थे.
समाचारपत्र ने एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी के हवाले से कहा, ‘खुफिया विभाग का यह मूल्यांकन है कि इस मामले में रूस का लक्ष्य एक उम्मीदवार की तुलना में दूसरे को प्राथमिकता दिलाना था और ट्रंप को चुनाव जीतने में मदद करना था.’
हालांकि ट्रंप की ट्रांजिशन टीम ने शुक्रवार शाम को जारी किए एक संक्षिप्त बयान में इस मूल्यांकन को खारिज कर दिया. बयान के अनुसार, ‘ये वही लोग हैं, जिन्होंने कहा था कि सद्दाम हुसैन के पास भारी विनाश के हथियार थे. चुनाव लंबे समय पहले खत्म हो चुका है, जिसमें इलेक्टोरल कॉलेज को इतिहास की सबसे बड़ी जीतों में से एक हासिल हुई है. अब आगे बढ़ने और अमेरिका को फिर से महान बनाने का समय है?'(इस बयान में भी सद्दाम हुसैन के प्रति वोही रवैया दिखाई देता है जो अमेरिका के खिलाफ रूस समर्थक विश्व का होता था)
समाचार पत्र के मुताबिक, सीआईए ने पिछले सप्ताह कैपिटल हिल में एक बंद कमरे में ब्रीफिंग में प्रमुख सीनेटरों के साथ अपने नवीनतम आकलन को साझा किया था, जिसमें एजेंसी के अधिकारियों ने कई सूत्रों से मिली जानकारी के हवाले से सीनेटरों को बताया कि अब ‘बिल्कुल स्पष्ट’ है कि रूस का लक्ष्य ट्रंप की जीत थी.
ओबामा ने रूस की भूमिका की जांच के आदेश दिए
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने के लिए की हुई हैकिंग की जांच का आदेश दिया है. व्हाइट हाउस होमलैंड सिक्योरिटी और आतंकवाद-रोधी सलाहकार लीजा मोनाको ने शुक्रवार को कहा, ‘राष्ट्रपति ने खुफिया विभाग को इस साल की चुनाव प्रक्रिया के दौरान जो भी हुआ, उसकी जांच का आदेश दिया है.’
सीएनएन के मुताबिक, व्हाइट हाउस के प्रवक्ता एरिक शुल्ज ने कहा कि जांच 2008 के अमेरिकी चुनाव से शुरू होगी.
मोनाको ने कहा कि प्रशासन अपनी जांच का परिणाम सार्वजनिक करने को लेकर सावधानी बरतेगा. वहीं शुल्ज ने कहा कि उनके पास जितनी जानकारी होगी, वे उसे साझा करेंगे.
सीएनएन के मुताबिक, सीनेट की खुफिया समिति के सभी डेमोकेट्रिक सांसदों ने ओबामा से मिलकर आठ नवंबर को हुए चुनाव के दौरान रूस की गतिविधियों का खुलासा करने को कहा है.
मोनाको ने कहा कि कोशिश है कि 20 जनवरी को ट्रंप के प्रशासन संभालने से पहले जांच पूरी हो जाए. ओबामा को पदमुक्त होने से पहले इसकी रिपोर्ट मिल जाने की उम्मीद है. वहीं, रूसी सरकार ने इस दावे को खारिज करते हुए इसका प्रमाण मांगा है.
विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा, ‘हम यह जानना चाहते हैं कि उन्होंने रूस पर यह आरोप किस आधार पर लगाया है.’ उन्होंने कहा, ‘विदेश मंत्री लावरोव अमेरिकियों को कई बार इसकी पूरी जानकारी देने को कह चुके हैं.’
सीआईए ने बंद कमरे में कुछ ‘कुछ महत्वपूर्ण सीनेटर्स’ के साथ अपने हाल के इस आकलन को साझा किया है. सीआईए ने पिछले सप्ताह कैपिटल हिल में एक सीक्रेट मीटिंग में यह जानकारी साझा की थी. एजेन्सी ने यह जानकारी विभिन्न खुफिया सूत्रों के जरिए जुटाई. रिपोर्ट के मुताबिक, खुफिया एजेन्सी ने ट्रम्प की मदद करने वाले जिन लोगों की पहचान की है, वे सभी रूसी सरकार के सम्पर्क में थे. इन लोगों ने विकीलीक्स (खुफिया सूचनाएं, न्यूज लीक्स और अज्ञात स्रोतों के जरिए जानकारियां प्रकाशित करने वाला अंतरराष्ट्रीय संगठन) को वे हजारों ई-मेल उपलब्ध कराए जो डेमोक्रेटिक नेशनल कॉमेटी और अन्य से हैक किए गए थे.
इनमें से कुछ ई-मेल हिलेरी क्लिंटन के अभियान के चेयरमैन जॉन पोडेस्टा के भी हैक किए गए थे. इनमें से कुछ अधिकारियों से रूसी अधिकारियों ने अपना पल्ला झाड़ लिया है. विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने रूस के साथ किसी तरह के सम्बंध होने से इनकार किया है. उन्होंने एक टीवी साक्षात्कार में कहा है कि उनके स्रोत का रूसी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है.
न्यूयार्क टाइम्स की खबर के मुताबिक रूस ने रिपब्लिकन नेशनल कॉमेटी के कम्प्य़ूटर सिस्टम को भी हैक कर लिया था लेकिन उन्होंने रिपब्लिकन नेटवर्क्स से जो जानकारियां हासिल कीं, उसे जारी नहीं किया.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, जिन्होंने एफबीआई की एक जांच के बारे में ब्रीफ किया हुआ है, कहते हैं कि रिपब्लिकन कमेटी के सिस्टम को समझ पाने की कोशिश सफल नहीं हो सकी थी. कोई नहीं जानता कि रिपब्लिकन कमेटी से कितनी फाइलें चुराई गईं थीं. ये साइबर हमले बसन्त के मौसम में हुए थे.
सितम्बर में, अमरीकी खुफिया और लॉ इन्फोर्समेन्ट एजेन्सियों को जांच के दौरान पता चला था कि रूसी सहयोग से अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप किया जा रहा है और डेमोक्रेटिक पार्टी के चुनावी अभियान पर अटैक कर उन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा है. अब हमें यह जानकारी हो गई है कि वे एक कदम और आगे बढ़ गए थे. अब यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या ट्रम्प ने यह चुनावी रूसी हस्तक्षेप के बिना जीता है.
महीनों से ओबामा प्रशासन इस उधेड़बुन में था कि रूस के अनुचित हस्तक्षेप का कैसे जवाब दिया जाए. व्हाइट हाउस के कुछ अधिकारियों ने आपस में बैठकर इस बात पर चर्चा की थी कि उनके प्रतिउत्तर से रूस के साथ तनाव में इजाफा तो नहीं हो जाएगा. एजेन्सी के अधिकारियों को व्लादिमिर पुतिन और उनके सहयोगियों से भी ‘विश्वसनीय जानकारी’ जुटाने में काफी अड़चनों, समस्याओं का सामना कर पड़ रहा था.
अबतक का जो घटना क्रम दिखाई दे रहा है उसमें गोर्वाचोव वाले मामले से पूरी तरह साम्यता है. ट्रंप भी आ ही गए हैं. जानकारों का कहना है कि ट्रंप की नीतियां आनेवाले समय में अमेरिका के पूंजीवादी रुख में बदलाव ला सकती हैं. हाल ही में आउट सोर्सिंग पर उनके कदमों में भी वही आहट दिखाई देती है. सबकुछ व्यापार और मार्केट के नजरिये से न देखकर आम लोगों की बात करना. कॉर्पोरेट को भले ही नुकसान हो लेकिन अमेरिकी नागरिकों के रोजगार की हिफाज़त हो. ये दोनों ही बातें पूंजीवाद की मूल अवधारणा के खिलाफ हैं. इसमें कहीं भी ट्रिकल डाउन इफेक्ट नहीं है. इसमें पूंजी उपर से नीचे अपने आप नहीं आ रही. जाहिर है अमेरिका भी आने वाले समय में अपने आपन नीचे नहीं आएगा. अगर आया तो लाया जाएगा.