आगरा: वो कश्मीरी आतंकवादियों की एक नहीं दो नहीं 5 गोलियां लेकर आया था वो. उसके प्राण आतंक की गोलियां खाने के बाद भी नहीं गए थे. 1990 में वो बहादुरी से लड़ा था लेकिन मोदी की नोटबंदी ने उसे तोड़ दिया. हार मानकर उनसे खुद को गोली मार ली. वो
फौजी था फौजी यानी वो मुहावरा जिसके नाम पर दुनियाभर की देश भक्ति बेची जा रही है. जिस फौजी के बहाने लोगों को लाइन में खड़े होने का विरोध करने के लिए जलील किया जा रहा है. वो फौजी भी लाइन में खड़ा नहीं हो सका. बॉर्डर पर खड़े होने से मुश्किल शायद उसे बैंक की लाइन में अपमान सहना लगा. बात आगरा की है. यहां के रहने वाले राकेश नाम के सैनिक की कहानी.
राकेश को सीआरपीएफ में रहने के दौरान कश्मीर में तैनाती के समय 1990 में पांच गोलियां लगी थी. इसके बाद उनका ऑपरेशन कर गोलियां निकाली गई थी.
उनके बेटे सुशील ने बताया कि सीआरपीएफ में रहने के दौरान गोली लगने के बाद से उनके हार्ट में समस्या थी. वे साल 2012 में हैड कांस्टेबल पद से रिटायर हुए थे. कई दिनों से वहले ताजगंज स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से पैसे निकलवाने जा रहे थे. लेकिन हर रोज खाली हाथ लौटते थे. राकेश आगरा के बुढ़ाना गांव के रहने वाले थे. उनके बेटे के अनुसार, ”मेरे पिता को हार्ट के इलाज के लिए पैसों की जरुरत थी. उन्हें 15 हजार रुपये की पेंशन मिलती थी. डॉक्टर के पास जाने और दवाइयों के लिए उन्हें 6-7000 रुपये चाहिए थे.”