नई दिल्ली: जबसे तिज़ोरियों, दीवारों, कारों और अलमारियों में ठुसे हुए 2000 के नोट मिलने शुरू हुए हैं तबसे लगातार बैंक मैनेजरों को टारगेट किया जा रहा है. सरकार भी लगातार बैंकों पर छापे मार रही है और अपरोक्ष रूप से ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि बैंकों की बेईमानी के कारण ही लोगों को लाइनों में लगना पड़ रहा है.
ये संदेश दिया जा रहा है कि बैंक लोगों को नोट न देकर सीधे पिछले दरवाजे से बांट रहे हैं. लेकिन बीबीसी ने इस बारे में पड़ताल की तो सवाल और गहरे हो गए. ये पता लगाना भी मुश्किल हो रहा है कि आखिर नोट लीक कहां से हो रहे हैं. इससे पहले कि नोटबंदी और नए नोटों की बरामदगी की बात हो, यह ज़रूरी होगा कि बैंकों तक पैसों के पहुँचने की कड़ी को समझा जाए.
भारतीय रिज़र्व बैंक सीधे तौर पर किसी खाताधारी को नकदी रक़म का भुगतान नहीं कर सकता है. वो यह रक़म बैंकों को देता है. यानी एक एक पैसा गिनकर ही दिया जा सकता है. इसके बाद पैसा चेस्ट में जाता है हर शहर में कुछ चुनिंदा चेस्ट ब्रांच होती हैं. चेस्ट मतलब वो तिजोरी जहां पैसा रखा जाता है. बैंक भी सीधे तौर पर रिज़र्व बैंक से नकदी नहीं लेते हैं. यह नकदी रिज़र्व बैंक से सीधे ‘कैश-चेस्ट’ जाती हैं जहां से इसे बैंकों को आवंटन के हिसाब से भेजा जाता है. यानी कैश चेस्ट ब्रांच को रकम देती है उसका हिसाब रिजर्व बैंक को देना ही होगा. कोई ब्रांच बिना कैश लिए चेस्ट को दस्तखत करके तो दे नहीं सकती.
इस नकदी को ‘कैश-चेस्ट’ से बैंकों तक ‘कैश-कॉन्ट्रैक्टरों’ के माध्यम से भेजा जाता है. कांट्रेक्टरों के पर बख्तरबंद गाड़ियां होती हैं जिनमें चेस्ट ब्रांच से गिनकर कैश लिया जाता है, चेस्ट से गिनकर ये पैसा ब्रांच को पहुंचाया जाता है. या फिर एटीएम में भरा जाता है. एटीएम से निकाला जाने वाला एक एक रुपया रिकॉर्ड में आता है क्योंकि पूरा ट्रांजिक्शन इलैक्ट्रानिक होता है. जाहिर बात है कि कैश वैन का एक भी कर्मचारी या अफसर चाहकर भी बिना कार्ड के पैसे नहीं ले सकता. वो ज्यादा से ज्यादा किसी कार्ट से रकम निकालकर अपने किसी मित्र को दे सकता है वो भी ढाई हज़ार की लिमिट में.
ब्रांच से रकम निकालने का अकेला सोर्स होता है. अब सवाल ये उठता है कि ट्रंक भरकर गुलाबी नोट जा कहां से रहे हैं.
आल इंडिया बैंक एम्प्लॉईज़ एसोसिएशन (एआईएबीए) के सीएच वेंकटाचलम कहते हैं कि बैंकों से सीधे तौर पर इतनी बड़ी रक़म किसी खाताधारी द्वारा निकालना मुमकिन नही है, क्योंकि निकासी की सीमा तय कर दी गयी है. जब कोई खातेदार 24 हज़ार रुपये महीने से ज्यादा निकाल ही नहीं सकता तो कोई बैंक बिना खाते में चढ़ाए किसी को इतनी रकम कैसे दे सकता है. अगर किसी खातेदार के नाम पर ये 24000 की रकम निकाली भी जाती है तो उसके दस्तखत कहां से आएंगे.
बचत खातों के लिए यह सीमा 24 हज़ार रूपए प्रति सप्ताह तय की गई है जबकि ‘करंट’ यानी चालू खातों के लिए निकासी की रक़म को 50 हज़ार रूपए प्रति हफ़्ता तय किया गया है. वो कहते हैं कि सभी बैंकों के कम्प्यूटरों को भी उसी तरह से ‘प्रोग्राम’ किया गया है जिससे तय की गई रक़म से ज़्यादा कोई अपने खाते से निकाल ही नहीं सकता. इस हिसाब से चालू खाते वाले भी एक महीने में सीमित रक़म से ज़्यादा नहीं निकाल पा रहे हैं.
लेकिन एआईएबीए ने रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को भेजे गए अपने प्रतिवेदन में आरोप लगाया है कि रिज़र्व बैंक राष्ट्रीय बैंकों की तुलना में कुछ एक चुनिंदा बैंकों को ज़्यादा नकदी उपलब्ध करा रहा है.
एआईएबीए के सीएच वेंकटाचलम का आरोप है कि निजी बैंकों में इस तरह की निकासी की संभावनाएं ज़्यादा हैं, इसलिए ही उनके संघ और ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन ने पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग केंद्र सरकार से की है.
वहीं दिल्ली पुलिस की ‘क्राइम ब्रांच’ के संयुक्त कमिश्नर रविंद्र यादव ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जिनके पास से ‘करंट करंसी’ के नोट बरामद किए गए हैं, उनका स्रोत क्या है.
रविन्द्र यादव के अनुसार दिल्ली पुलिस उन लोगों से पूछताछ नहीं कर रही है इनके पास से यह रक़म बरामद की गयी है.
उनसे पूछताछ और मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग के अधिकारी कर रहे हैं.
वैसे दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को लगता है कि इसमें ‘बैंक के कर्मचारियों’ और कुछ ‘व्यवसायियों’ के बीच का कोई अंदरूनी गठजोड़ हो सकता है.
वहीं आयकर विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अब तक देश के विभिन्न स्थानों से बरामद किए गए नए ‘करेंसी’ के नोटों की जांच चल रही है जिसके बाद ही इसमें ज़िम्मेदारी तय की जा सकेगी.
आयकर विभाग का कहना है कि इतनी बड़ी रक़म की बरामदगी के कई कारण हो सकते हैं जैसे एक व्यक्ति के कई व्यावसायिक प्रतिष्ठान और उनसे जुड़े चालू खाते. some inputs from BBC