नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका परस्ती और जांचे परखे दोस्त रूस को छोड़ कर अमेरिका के खेम में घुस जाने की नीति का बुरा असर अब चीन और रूस के साथ भारत के रिश्तों पर होने लगा है. हमेशा से पाकिस्तान का साथ देने वाले अमेरिका की तरफ भारत न्यौछावर हुआ जा रहा है. यहां तक कि नोटबंदी के पीछे भी अमेरिका की पूंजीवादी विचारधारा को समर्थन करने की भारत की हरकत को देखा जा रहा है.
नतीजा ये हुआ है कि अब रूस ने अब सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने की वकालत करते हुए भारत को बड़ा झटका दिया है. उड़ी हमले के बाद भारत चाहता था कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को दुनिया के देशों से अलग-थलग किया जाए, लेकिन रूस ने न सिर्फ चीन पाक आर्थिक गलियारे का समर्थन किया बल्कि यह भी कहा कि उसका इरादा उसके यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन प्रोजेक्ट को इस गलियारे के जोड़ने का भी है.
पाकिस्तान में रूस के राजदूत एलेक्सी वाई. देदोव ने यहां तक कहा कि रूस चाहता है कि भारत और पाकिस्तान आपस में मिलकर कश्मीर समेत सभी मुद्दों पर अपने मतभेद मिटाने की पहल करें. पाकिस्तान के मीडिया ‘जिओ’ न्यूज ने इस समाचार को प्रमुखता के साथ ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित किया है. इससे पहले रूस ने अधिकृत रूप से कहा था कि वह चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) प्रोजेक्ट में कोई दिलचस्पी नहीं रखता है. रूस का यह यू-टर्न भारत के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि भारत हमेशा से रूस का पारंपरिक दोस्त रहा है.
देदोव ने कहा कि सीपीईसी से न सिर्फ पाक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी बल्कि क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. दरअसल, सीपीईसी प्रोजेक्ट चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सिल्क रोड आर्थिक बल्ट और 21वें मेरीटाइम सिल्क रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है. चीन चाहता है कि इन दोनों विकास योजनाओं को एशिया और यूरोप के देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ाया जाए. यह प्रोजेक्ट पाक अधिकृत कश्मीर से होकर बलूचिस्तान से गुजरते हुए ग्वादर बंदरगाह तक गया है, जिसका भारत ने विरोध किया है.
2016-12-19