नई दिल्लीः केन्द्र सरकार ने एक अच्छी खबर दी है. होटलों और रेस्त्रां में खाना खाने पर आपके लिए सर्विस टैक्स अब माफ होगा. ये आपकी मर्ज़ी पर होगा कि आप सर्विस चार्ज दें या नहीं.
अब तक होटलों और रेस्टोरेंट्स 5 फीसदी से लेकर 20 फीसदी तक सर्विस चार्ज लेते हैं. यहां समझना ज़रूरी है कि सर्विस चार्ज और सर्विस टैक्स में अंतर होता है और ये छूट सर्विस टैक्स नहीं बल्कि सर्विस चार्ज पर दी गई है.
सर्विस टैक्स और सर्विस चार्ज को लेकर हमेशा से ही भ्रम की स्थिति रही है. लेकिन ये समझना चाहिए कि सर्विस टैक्स सरकार के खजाने में जाता है.
किसी भी एयरकंडीशंड रेस्त्रां में खाने-पीने पर सर्विस टैक्स देना अनिवार्य है. ध्यान देने की बात ये है कि वैट और दूसरे टैक्स या फिर सर्विस चार्ज को हटाने के बाद बची रकम के 40 फीसदी पर ही सर्विस टैक्स देना होता है जिससे इसकी प्रभावी दर 15 फीसदी ना होकर 6 फीसदी हो जाती है.
दूसरी ओर सर्विस चार्ज होटल या रेस्त्रां के गल्ले में जाता है. होटल और रेस्त्रां में सभी बेयरों के बीच बराबर-बराबर टिप बंटे, इसीलिए प्रबंधन सर्विस चार्ज लेता है जो बिल की कुल रकम के 5 से 20 फीसदी के बराबर होता है.
उपभोक्ता मामलात मंत्रालय की मानें तो ग्राहकों ने जबरन सर्विस चार्ज वसूले जाने की शिकायत की है. ध्यान देने की बात ये है कि उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 में बिक्री बढ़ाने और वस्तु या सेवा मुहैया कराने के लिए यदि कोई अनुचित या भ्रामक तरीका अपनाता है तो उसे अनुचित व्यापार व्यवहार माना जाएगा और ग्राहक उसके खिलाफ शिकायत कर सकता है.
इसी के मद्देनजर उपभोक्ता मामलात मंत्रालय ने होटल एसोसिएशन से सफाई मांगी. एसोसिएशन का कहना था कि सर्विस चार्ज पूरी तरह से ग्राहक के विवेक पर निर्भर करता है. यदि ग्राहक सेवा से संतुष्ट नहीं है तो वो इस चार्ज को हटवा सकता है. लिहाजा सर्विस चार्ज को पूरी तरह से स्वैच्छिक माना जाना चाहिए.
मंत्रालय ने अब तमाम राज्य सरकारों से कहा है कि वो इस बारे में कंपनी, होटल और रेस्त्रां को उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रावधानों की जानकारी दें. साथ ही वो होटल औऱ रेस्त्रां को सलाह दे कि कि वो अपने-अपने प्रतिष्ठानों में सर्विस चार्ज स्वैच्छिक है, वैकल्पिक है का बोर्ड लगाएं. बोर्ड पर ये भी लिखा होना चाहिए कि असंतुष्ट ग्राहक इसे बिल से हटवा सकता हैं.
सर्विस चार्ज को लेकर वित्त मंत्रालय भी स्थिति स्पष्ट कर चुका है, फिर भी कई रेस्त्रां और होटल आभास दिलाते हैं कि ये पैसा सरकार को जा रहा है और ग्राहकों को देना ही होगा. अब उपभोक्ता मामलात मंत्रालय की ओर से स्पष्टीकरण आने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि होटल और रेस्त्रां मालिक ग्राहकों को अंधेरे में नहीं रखेंगे.