नई दिल्ली ; चुनाव आयोग में आखिर अखिलेश की जीत हुई. चुनाव चिन्ह साइकिल को चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव को देने का फैसला सुनाया है. इंडिया टीवी ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है. चैनल का दावा है कि उसे सूत्रों से खबर मिली है और जल्द ही फैसले का एलान कर दिया जाएगा. चैनल के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले में विधायक दल का बहुमत ही पार्टी पर अधिकार का फैसला करने का एकमात्र तरीका है. अखिलेश के साथ विधायकों का बहुमत है.
सूत्रों का कहना है कि चुनाव आयोग में साइकिल को फ्रीज करने पर भी विचार हुआ लेकिन साइकिल को फ्रीज करने में सबसे बड़ा कानूनी पेंच यह है कि अब तक पार्टी में टूट नहीं हुई है. अब तक जितनी भी बार चुनाव चिन्ह फ्रीज हुआ है तब-तब पार्टियां दो फाड़ हुई थीं लेकिन यहां मामला अलग है. सपा अब तक दो फाड़ नहीं हुई है बल्कि अखिलेश और मुलायम दोनों ग्रुप पार्टी पर अपना दावा जता रहे हैं. सपा में अपने दावों को मजबूत करने की खातिर एक ओर जहां मुलायम संविधान की दुहाई दे रहे हैं तो अखिलेश पार्टी में बहुमत का दम दिखा रहे हैं.
मुलायम सिंह इस मामले को अदालत में ले जा सकते हैं . वो पहले ही इसका एलान भी कर चुके हैं. लेकिन जानकारों का मानना है कि ऐसे फैसलों पर अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती और चुनाव आयोग सर्वेसर्वा होता है.
फैसले से पहले चुनाव आयोग के अधिकारियों ने दोनों गुटों की ओर से दिए गए सबूतों और दलीलों की समीक्षा की. चुनाव आयोग तय करेगा कि आखिर साइकिल की सवारी पिता मुलायम सिंह यादव करेंगे या पुत्र अखिलेश यादव. चुनाव आयोग दोनों ही गुटों की बात सुन चुका है. मुलायम और अखिलेश दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी बात रख चुके हैं.
पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अब चुनाव चिह्न कोई भी हो, चुनाव वही प्रत्याशी लड़ेंगे जिनके टिकट उनके दस्तखत से जारी होंगे. मुलायम सिंह यादव ने दावा किया कि ये मामला उनके बाप-बेटे के बीच में है, बेटे को कुछ लोगों ने बहका दिया. उन्होंने रामगोपाल यादव का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों इशारों में बहुत कुछ कह दिया.
इससे पहले मुलायम सिंह यादव अमर सिंह और शिवपाल यादव के साथ चुनाव आयोग पहुंचे थे. चुनाव आयोग में उन्होंने पार्टी संविधान का हवाला देते हुए दावा किया कि वही हैं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिलेश कैंप के दावों में कोई दम नहीं है.
मुलायम ने चुनाव आयोग से कहा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष को हटाया नहीं जा सकता है. राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने के लिए कम से कम 30 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य है, जिसका पालन नहीं किया गया.
मुलायम गुट ने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की एक प्रक्रिया है, जिसका पालन नहीं किया गया. रामगोपाल यादव को पहले से ही उनके पद से हटा दिया गया था. लिहाजा वो कोई रेजोल्यूशन नहीं ला सकते. उनके पार्टी से जुड़ने का ऐलान सिर्फ ट्विटर के जरिए ही हुआ था, जो कि मान्य नहीं हो सकता.
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को हटाने का कोई प्रस्ताव नहीं लाया गया था. लिहाजा नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने का औचित्य ही नहीं पैदा होता. अखिलेश कैंप जिनके समर्थन का दावा कर रहा है, चुनाव आयोग उनका फिजिकल वैरिफिकेशन करवाए.